________________
देश की परिस्थिति ऐसी थी कि मॉडरेट लोगों को कोई रोक नहीं रहा था। वे कौंसिलों में थे ही। देश पर या सरकार पर उनका कोई प्रभाव नहीं था। आज तक कांग्रेसवाले कौंसिलों का बहिष्कार करते थे, वे अब कौंसिलों में जाकर अन्दर से सरकार का विरोध करना चाहते थे।
मैंने देखा कि उत्तर भारत में राष्ट्र के हिन्दू समाज और मुस्लिम समाज ऐसे दो टुकड़े हुए थे, वैसे ही दो टकडे दक्षिण में ब्राह्मण और ब्राह्मणेत्तर के भी हुए थे। दक्षिण भारत के लिए यह सवाल बड़ा कठिन हो गया था। शिक्षण में, समाज-सुधार में, राजनीतिक जागृति में, अधिकतर नेता ब्राह्मण ही थे। उनकी बुद्धि
और राजनीति दोनों तेजस्वी थे। किन्तु बहुजन-समाज तो ब्राह्मणेत्तर ही होगा। क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, हरिजन, हाथकारीगर, गांव के नेता, इत्यादि सब ब्राह्मणेत्तर ही होते थे। आगे जाकर ब्राह्मणेत्तरों में मुसलमान और ईसाइयों की भी गणना होने लगी। मैंने एक दिन मजाक में कहा था, 'जो ब्राह्मण नहीं, सो घोड़ा हो, बैल हो या बन्दर हो, सभी ब्राह्मणेत्तर ही हैं।"
बापूजी जब जेल गए तब आन्ध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में मुझे अनेक बार जाना पड़ता था। तब मैंने देखा कि राजाजी जैसे तेजस्वी ब्राह्मण कांग्रेस के नेता हैं यह देखकर ब्राह्मणेत्तर नेता कांग्रेस के बाहर रहते थे। मैंने उनको जोर देकर कहा, "आप लोग विशाल ब्राह्मणेत्तर जनता के साथ अन्याय कर रहे हैं। कौन कहता है कि कांग्रेस ब्राह्मणों की संस्था है ? अब देखिए, महात्मा गांधी बनिए ब्राह्मणेत्तर हैं, सरदार वल्लभभाई किसान हैं, चितरंजनदास कायस्थ हैं। कांग्रेस तो करोड़ों की संख्यावाले ब्राह्मणेत्तरों की प्रतिनिधि संस्था है। आपको उसमें हक का स्थान है उसमें दाखिल हो जाइए। उस संस्था पर कब्जा कर लीजिए। फिर उसमें चमकने वाले ब्राह्मण नेता या तो आपके सहायक साथी बनेंगे या निकल जायंगे । बहुमत आपका होते हुए कांग्रेस में आते आप डरते क्यों हैं ?"
इसका असर अच्छा हुआ। के० सी० रेड्डी, दासप्पा इत्यादि कर्नाटक के नेता कांग्रेस में आए और चमकने लगे।
____ बापूजी जेल में होने से देश में मन्दी आई थी और कौंसिल-बहिष्कार का कार्यक्रम तोड़कर कौंसिल के के अन्दर ही लड़ाई ले जानी चाहिए, ऐसा कहने वाले लोग उतावले बने थे। तब कर्नाटक की एक राजनैतिक परिषद के अध्यक्ष को मैंने सूचित किया कि अपनी प्रमुख नीति तो 'नाफेरवादी, यानी कौंसिल-बहिष्कार की ही होनी चाहिए, किन्तु उस सख्त नीति का अमल सिर्फ ब्राह्मण नेता करें। यदि कोई ब्राह्मणेत्तर नेता कौंसिल में प्रवेश करके सरकार का विरोध करना चाहे तो कांग्रेसवालों को उनकी मदद करनी चाहिए। अपने मतदाताओं के मत उनको दिलवाने चाहिए।
मेरी यह नीति दक्षिण के लोगों को बहुत अनुकूल सिद्ध हुई। ब्राह्मणेत्तर पक्ष में तेजस्विता आई । अच्छे अच्छे प्रतिभावान नेता उनको मिले और कांग्रेस में दो दल होने की जो नौबत आई थी, वह टल गई। कौंसि के बाहर और कौंसिल के अन्दर दोनों तरीकों से अंग्रेज सरकार का जोरदार विरोध हुआ और जनता के उत्साह में कमी आना रुक गया। अन्दर-अन्दर की परस्पर विरोधी चर्चा भी रुकी। अंग्रेज सरकार के प्रति विरोध मजबूत होने लगा और उसके साथ-ही-साथ ब्राह्मण और ब्राह्मणेत्तरों के बीच जो थोड़ी कटता थी, वह भी दूर हुई।
बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा | १८१