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________________ इस साल कांग्रेस के सफाई विभाग का काम उत्तम हुआ। "एक सुन्दर आदर्श का हमको उदाहरण मिला ।" ऐसा लोग कहने लगे । गंगाधरराव ने गांधीजी को बेलगांव कांग्रेस के लिए आमंत्रित किया, तभी तय कर रखा था कि सारे देश के लोग गांधीजी को मिलने आयेंगे तब उनके लिए कांग्रेस की भूमि पर ही रहने की व्यवस्था खादी के मकान में करनी है। गांधीजी जैसे अपने हृदयस्वामी और राष्ट्र के नेता, उनके लिए अच्छे-से-अच्छा एक मकान तैयार किया। उनके उस उत्साह की ओर कौशल की कदर करते गांधीजी ने अपने अनोखे तरीके से अखवार में लिखा था "आई हैड बारगेंड फॉर खरहट, बट आई वास इंसल्टेड विद ए खट्टर पैलेस" (मैने तो खादी की झोंपड़ी में रहने की बात की थी, किन्तु उन्होंने तो मेरे लिए खादी का राजमहल बनाकर मेरा अपमान किया।) महात्माजी की कलम से तो इसी तरह कदर हो सकती है न! उसे पढ़ने के बाद गंगाधरराव ने गांधीजी के पास जाकर कहा, "बापूजी, उस खादी के राजमहल का खर्च कितना हुआ, मालूम है ? पूरे साढ़े तीन सौ रुपये । कांग्रेस की समाप्ति के बाद उस महल का सामान बेच दिया, उसमें से ढाई सौ वापस मिल गये ।" इस तरह से मेरा काम बढ़ता चला। घर में पत्नी की बीमारी भी थी। मेरे शरीर में क्षयरोग के जन्तु थे ही उस रोग ने मुझे फिर से घेर लिया। To जीवराज मेहता ने जांच की। मेरे छाती के फोटो देखकर स्पष्ट अभिप्राय दिया कि क्षयरोग का प्रारम्भ है । बम्बई के एक वैद्य ने भी खूब ध्यानपूर्वक मेरी नाड़ी देखी और चार अक्षर बोले, "राज- यक्ष्मा । " सबको आश्चर्य हुआ। मुझे नहीं हुआ, उसका कारण यह था । बेलगांव में डा० शिरगांवकर सबसे होशियार डाक्टर थे। बहुत से परिवारों की दवा करते थे। बेलगांव और शाहपुर बिलकुल पड़ोस के दो शहर थे। इन दो शहरों में रहनेवाले हम सब लोगों की तबीयत के बारे में उनको पूरी जानकारी थी। मैं कालेज में पढ़ता था तब मैं एक बार अपनी तबीयत दिखाने को उनके पास गया था । भाई साहब और बहुत सी बातें भूल जाते हैं, बार-बार पूछते हैं, किन्तु रोग की सब बारीकियां उनको बरसों तक याद रहतीं। उन्होंने कहा, "आपके पिता का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है । वयस्क होने पर भी उनका एक भी दांत नहीं गिरा, किन्तु आपके मां के मायके में क्षयरोग है।" फिर उन्होंने उस खानदान के अनेक लोगों के नाम लेकर हरेक आदमी कैसे गुजर गया, उसकी बात कही। आपके मामा के अन्दर भी अयरोग का असर था ही। इसलिए कहता हूं कि अभी से अपना स्वास्थ्य आपको सम्भालना चाहिए। यदि मांस खाने को कहूं तो आप मानेंगे नहीं। हालांकि मांस न खाना है तो मूर्खता ही, किन्तु अब से आप अण्डे खाना शुरू कर दें। मैंने यह सलाह शांति से सुनी किन्तु उसको माना नहीं । ऐसे स्पष्ट वक्ता डाक्टर को उत्तर भी ऐसा ही देना चाहिए। मैंने शांति से कहा, "प्राणियों को मारकर पुष्ट होने में मेरा विश्वास नहीं है।" और जोश लाने के लिए अंग्रेजी में कहा, "माई लाइफ इज वर्थ वन एग," आपने मुझे इतने विस्तार से सलाह दी है कि वह बेकार नहीं होगी। मैं अपना स्वास्थ्य खूब सम्भालूंगा । मरने का होगा तब महंगा ही, लेकिन आपको यकीन दिलाता हूं कि मैं क्षय रोग से नहीं महंगा । मुझे क्षयरोग है, ऐसा तय हुआ तब डा० शिरगांवकर को दिया हुआ वचन मुझे याद आया । मैंने सोचा, "डाक्टर की चेतावनी सही निकली। क्षयरोग शरीर में घुसा है। अब मेरा संकल्प मुझे सिद्ध करना चाहिए। क्षयरोग को मैं अवश्य जीतूंगा ।" स्वामी आनन्द मेरे आत्मीय जन और सब तरह से मेरे हितकर्ता उन्होंने मेरा केस हाथ में लिया । बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा / १७५
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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