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'लोक-मान्य' का नाम दिया ।
उस राष्ट्रीय पक्ष की भूमिका निम्नलिखित थी।
"अंग्रेजों का राज्य भारत पर मजबूत हुआ। यह एक ईश्वरीय योजना है, भारत के पक्ष में है," इस तरह की भ्रांति का हम सख्त विरोध करते हैं।' अंग्रेज लोगों का धर्म, उनकी संस्कृति, उनकी भाषा इन तीनों की अपने ऊपर जबर्दस्ती हो रही है। उसके सामने डटकर अंग्रेजी राज्य तोड़ने के प्रयत्न फिर से होने चाहिए। १८५७ के साल में हम हार गए उसके कारण ढूंढेंगे। देशद्रोही लोगों ने अपना स्वार्थ साधने के लिए अंग्रेजों को पहले से विप्लव होने की बात कह दी, देश को उन्होंने दगा दिया। और अब वे लोग अंग्रेजी राज्य में ऊंचे स्थान पर पहुंच गए हैं। उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बहुत होगी । उसको हमें तोड़ना चाहिए। जीने के लिए कहीं तो नौकरी करनी ही पड़ेगी। सरकारी नौकरी खराब है। पर उसका त्याग कहां तक करेंगे। किन्तु नौकरी मिलती है इसलिए सरकार के प्रति निष्ठा किसलिए रखनी चाहिए ? ऊपर से राजनिष्ठ होने का दावा भले हम करें, किन्तु अन्दर से अंग्रेजों के प्रति दुश्मनी ही हमें फैलानी चाहिए।
___अंग्रेजी के और अंग्रेजी विद्या के ये भक्त अपनी सामाजिक कमजोरियों की बात रात दिन करते हैं। सामाजिक कमजोरी किस देश में नहीं है ? कमजोरी चला लेंगे। धीरे-धीरे दूर करेंगे। किन्तु जो सुधार हजारों बरस के बाद होनेवाला है, उसी को लेकर यदि हम जीवन की निन्दा करेंगे तो समाज में बड़ी-बड़ी दरार पड़ जायेंगी। समाज की निष्ठा हम खो बैठेंगे, प्रजा नेतृत्व-हीन हो जायगी। अंग्रेजों का राज्य मजबूत होगा। इसलिए संसार-सुधार की बात इस समय हम बाजू पर रहने दें। जाहिर करें कि प्रथम स्वराज्य हो, उसे प्राप्त किए बाद संसार सुधार तो करना ही है।
- हमें देखना चाहिए, “जो लोग स्वराज्य चाहते हैं उनकी प्रतिष्ठा तोड़ने के लिए सरकार हर तरह की कोशिश करती है। स्वराज्य-द्रोही लोगों को बड़ी-बड़ी नौकरियां देती है । उनकी संस्थाओं को पैसे की मदद देती है, प्रतिष्ठा बढ़ा देती है, इस तरह समझा-समझाकर राष्ट्रीय पक्ष को मजबूत करनेवाले लोग अंग्रेजों का इतिहास हमें समझाते थे।
उत्तर भारत में जब मुगलों का राज्य था, तब यहां के मुसलमान भी अपने को इस देश का मालिक मानते थे। उन दिनों मुसलमान अंग्रेजों की विद्या सीखते नहीं थे। इस देश पर राज करने का अधिकार मुसलमानों का, उसे छीनकर अंग्रेजों ने अपना राज मजबूत किया, ऐसे दुश्मनों की भाषा कौन सीखे? उनकी नौकरी कौन करे? ऐसा कहकर मुसलमान अलग रह गए।
उस दरमियान हिन्दुओं ने अंग्रेजी विद्या सीखी, सरकारी नौकरियों में दाखिल हुए, उनको अंग्रेज लोग खानगी में कहते, "देखो, यह देश है आपका, हिन्दुओं का। आप पर जबरदस्ती करके इन विदेशी पठान और मुगल लोगों ने आपके देश पर कब्जा जमाया। लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया। इस गुलामी में से ऊपर आने का मौका हम आपको दे रहे हैं। जैसे-जैसे हमारी भाषा सीखोगे वैसे-वैसे सरकारी नौकरी में आपको ऊंचा पद देंगे। राज्य चलाने का अधिकार आपके ही हाथ में आएगा इसलिए हमारे राज्य के प्रति वफादार रहिए। हम किसी पर धर्म की कोई जबर्दस्ती नहीं करते, न करने देते हैं, इसलिए ब्रिटिश राज्य के प्रति आप वफादार रहिए।"
यह परिस्थिति चली। जब हिन्दुओं को अंग्रेजी शिक्षण का लाभ मिला और उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ी, तब इंग्लैंड का इतिहास पढ़कर वे स्वराज्य की बातें करने लगे। अच्छे अंग्रेजों ने उनको प्रोत्साहन दिया, कांग्रेस की स्थापना करने में मदद दी किन्तु राज्य करनेवाले अंग्रेजों को कांग्रेस की राष्ट्रीय पक्ष की मांग अच्छी न लगी । तब उन्होंने मुसलमानों को अपनाने की नीति अख्तियार की। कहने लगे, "हमारा राज हुआ, उससे
बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा | १६५