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________________ काकासाहेब को कुछ वर्ष से बहुत कम सुनाई देता है। उनकी एक प्रमुख अभिव्यक्ति वार्तालाप द्वारा है, वह अब सूख-सी गई है । मैं उनके पास जाता हूं, और पास में पड़ी हुई स्लेट की मदद से स्लेटालाप करता हूं। उनकी आंख में चमक आ जाती है । छोटी-से-छोटी विनोद-रेखा भी एकदम पकड़कर हंस पड़ते हैं । उनका बृहत् व्यक्तित्व पूरा-का-पूरा चेतनाविभोर हो उठता है । भारत की युग-युग की संस्कृतिधारा, सौन्दर्यविभूषित समूचे भूगोल-खगोल, मनुष्यजाति की 'पतन-अभ्युदयबन्धुर' आयुष्ययात्रा, मनुष्य-विषयक वात्सल्ययुक्त चिंता इन सबकी उन समन्वययोगी के व्यक्तित्व में हम झांकी कर पाते हैं। देश-विदेश के बीच समन्वय के संस्थापक महातम सिंह 00 इस वर्ष पूज्य काकासाहेब अपने समपित जीवन के ६४ वर्ष पूरे कर ६५ वें में प्रवेश कर रहे हैं। इस मंगल अवसर पर इन महान साधक के प्रति अभिनंदन के रूप में दो शब्द अंकित करते समय आज से २५ वर्ष पूर्व की, जब मेरा प्रथम परिचय उनसे हुआ था, घटना स्मृति-पटल पर उभर आई है। छात्रावस्था में काकासाहेब के बारे में बहुत-कुछ सुना था, पर उनसे साक्षात्कार का अवसर १९५४ में मिला । स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय मनीषियों ने अच्छी तरह अनुभव कर लिया था कि भारत के पास साहित्य, संगीत, कला तथा मानव-जीवन को परिपुष्ट करने के लिए प्रायः सभी क्षेत्रों में बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध है जो विश्व कल्याणार्थ प्रदान की जा सकती है और जिससे भारतीय ऋषियों की प्राचीनतम भावना 'यत्र भवति विश्वं एक नीऽम्' सार्थक बन सकती है। इस कार्य के संचालन के निमित्त एक ऐसी संस्था की आवश्यकता थी, जो सरकारी नियंत्रण से मुक्त रहकर कार्य सम्पादन कर सके। १९५२ में 'भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद' की स्थापना हुई और काकासाहेब इसके उप-प्रधान बने। सोचा गया कि सुदूर पूर्व के लिए पीकिंग, अरब देशों के लिए काहिरा, यूरोप तथा अमरीका में सांस्कृतिक केन्द्रों की स्थापना हो । तत्कालीन शिक्षा-मंत्री स्व० मौलाना अबुल कलाम आजाद की अनुमति प्राप्त कर काकासाहेब, काहिरा, लंदन, न्यूयॉर्क होते हुए कैरीबियाई देशों (जयेका त्रिनीदाद, गियाना और सूरीनाम की यात्रा पर १६५८ में आये । मैं उन दिनों गियाना में सांस्कृतिक प्रवक्ता का काम कर रहा था और समय-समय पर सूरीनाम जाया करता था। जमेका और त्रिनीदाद में काकासाहेब और बहन सरोजनी नानावटी की यात्रा की व्यवस्था तत्कालीन राजदूत डॉ० एन० वी० राजकुमार ने की थी और गियाना तथा सूरीनाम की व्यवस्था मेरे द्वारा हुई थी। जॉर्ज टाउन के हवाई अड्डे पर काकासाहेब का भव्य स्वागत हुआ। स्वागतार्थ उपस्थित प्रमुख व्यक्तियों में डॉ. जगन की पत्नी जैनेट जगन भी थीं, जो उस समय श्रम-मंत्री थीं । प्रधान मत्री डॉ० छेदी जगन लण्दन की यात्रा पर गये हुए थे। इस क्षेत्र के छोटे-से प्रवास-काल में ही काकासाहेब ने प्रवासी भारतीयों की प्रमुख समस्याओं का आकलन कर लिया था। उन्होंने कहा था, लोग विभिन्न गुटों में बंटे हुए हैं। एक गुट - का नेता अपने ही लोगों की सीमित स्वार्थ-सिद्धि में लगा है। प्रवासी भारतीयों की व्यापक उन्नति की बात उनके मन में नहीं बैठती। राष्ट्रीय भावना का नितान्त अभाव दृष्टिगोचर होता है। सनातनियों और आर्यसमाजियों के बीच पुरानी लड़ाई की बात जानकर उनके मन में अपार कष्ट हआ था। उनको लगा कि धर्म व्यक्तित्व : संस्मरण | १११
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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