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________________ प्रवृत्तियों में मेरी पूरी रुचि है । अगर आप काकासाहेब से इजाजत लेकर यहां आश्रम में एक मकान बना दें तो मुझे बहुत खुशी होगी।" भाई ने तुरंत कहा, "यह जगह देखो यहां हमें एक मकान बनाना है। नक्शा हमने बनवा लिया है । लेकिन हमने सरकारी मदद लेना छोड़ दिया है । आप अगर इस जमीन पर प्रार्थना भवन निर्माण कराना चाहो तो मैं अभी आपको काकासाहेब से मिला दूं।" मैंने कहा, “ठीक है ।" शांतिभाई मुझे काकासाहेब के पास ले गये । मेरे लिए पूज्य काकासाहेब का यह पहला दर्शन था। जब कमरे में दाखिल हुआ तो एक फरिश्ता सीरत बुजुर्ग को चारपाई पर बैठे देखा । दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया। चरण-वंदना करने लगा तो उन्होंने मना किया कि चरण वंदना नहीं करना चाहिए। हाथ जोड़कर प्रणाम करना बस है । उनकी चारपाई के पास पड़े मूढ़ों पर हम बैठ गये । शांतिभाई ने कहा, "यह भाई यहां दरियागंज से आये हैं । इनके पिताजी की इच्छा यहां आपके आश्रम में प्रार्थना भवन बनवाने की है । आप इजाजत दें तो वे अपने माता-पिता और बड़े भाई को लेकर आयेंगे तथा आपसे बातचीत करके भवन बनाने के लिए रुपये दे जायेंगे । काकासाहेब ने खुशी से आज्ञा दे दी। मैं खुशी-खुशी घर आया। रात को पिताजी से बात की। दूसरे दिन सुबह हम तैयार होकर पिताजी, माताजी, बड़ा भाई, छोटा भाई और मैं — पांच लोग काकासाहेब पहुंच गये। शांतिभाई हमारे साथ थे । बातचीत पिताजी और काकासाहेब की हो गई । मैंने कहा, जब प्रार्थनाभवन तैयार हो जाय तो बनवाने वाले नाम का पत्थर आपको लगाना होगा । काकासाहेब ने तुरंत कहा, "हमारी गांधीजी की संस्थाओं में नाम का पत्थर लगाने का रिवाज नहीं है । हम पत्थर नहीं लगवायेंगे । प्रार्थना भवन बनाना हो तो बनावें, न बनाना हो तो न बनवावें ।” सुनकर हम लोग खामोश हो गये । आखिर हम पांचों लोग बाहर आकर बरामदे में बैठे । पिताजी ने कहा कि काकासाहेब ने जो कहा है कि हम पत्थर नहीं लगवायेंगे, सो काकासाहेब पत्थर लगावे या न लगावें, हम उनको रुपये दे दें, और प्रार्थना भवन बनवा लें। हम सबने कहा, ठीक है । चुनांचे वापस काकासाहेब के पास जाकर पिताजी ने कहा, आप पत्थर लगावें या न लगावें, हम रुपये प्रार्थना भवन बनवाने के लिए दे जायेंगे । चुनांचे तारीख मुकर्रर हो गयी और हमने रुपये काकासाहेब के पास जमा करवा दिये। मैंने कहा, हमारी एक शर्त है कि इस मकान में गांधीजी की सार्वजनिक सर्वधर्म समन्वय की प्रार्थना रोज हुआ करे और प्रार्थना के बाद जब काकासाहेब दिल्ली में हों, उनका प्रवचन हुआ करे । काकासाहेब ने दोनों बातों की मंजूरी खुशी दे दी। १ अगस्त १९६० को प्रार्थना भवन बनकर तैयार हो गया और उसी दिन पूज्य काकासाहेब के हाथों उसका उद्घाटन हुआ और अशोक वृक्ष का पौधा भी लगाया गया । काकासाहेब ने फरमाया कि प्रार्थना भवन रोजाना सार्वजनिक प्रार्थना हुआ करेगी और इस मतलब की तख्ती भी लगवायी । उन दिनों प्रार्थना शाम को पांच बजे होती थी, वह रोजाना बाकायदा होने लगी। कुछ दिन इस तरह गुजरे, लेकिन हम लोगों को यह अनुकूल न था । पिताजी वृद्ध थे । वे शाम की प्रार्थना में शामिल नहीं हो सकते थे । हममें से सिर्फ एक भाई प्रार्थना में शामिल होता । मैंने काकासाहेब से प्रार्थना की कि अगर प्रार्थना सुबह रखी जाये तो हमें बहुत अनुकूल होगा । काकासाहेब ने मंजूर किया और प्रार्थना सुबह ६-४५ पर शुरू हो गयी । फिर क्या था ? फिर तो हमारे घर से पिताजी, माताजी, हम दोनों भाई और दोनों भाइयों की धर्मपत्नियां सब प्रार्थना में शामिल होने लगे । काकासाहेब का प्रवचन बाकायदा रोजाना होता । हमारे पिताजी व्यक्तित्व : संस्मरण / १०१
SR No.012086
Book TitleKaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain and Others
PublisherKakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
Publication Year1979
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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