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इनको गणेश हम कैसे कहें !
(१) तनपर है धर्म धूलि खासी, मृगछाल महाव्रत ओढ़े हैं । जिन-वृष पर हैं आरूढ़, उमा अनुभूति से प्रीती जोड़े हैं । तिरसूल सदा रत्नमय ले, सम्मेद शिखर-कैलाश बसें । गुरुवर तव सच्चे महादेव, इनको गणेश हम कैसे कहें ?
पुरूषार्थ चतुष्टय भुजा चार शशिकला कीर्ति छवि छायी है। उपदेशामृत पावन गङ्गा भी वसुधा पर आज वहायी है। पी लिया कषाय कठिन विष को शल्य त्रय त्रिपुर भी धू धू दहे गुरूवर तव सच्चे महादेव इनको गणेश हम कैसे कहें ?
( ३) सुज्ञान सुतीक्ष्ण तृतीय नेत्र -की ज्योति मदनको दहती है। गल माल भुजङ्ग परीषह हैं, ओंनमः सुमरनी लसती है ॥ सन्देह नहीं शङ्कर ही हैं। आबाल वृद्ध जब यही कहें । गुरुवर तुम सच्चे महादेव । तुमको गणश हम कैसे कहें ?
स्या० वि० काशी]
(वि०) नरेन्द्र
साठ