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________________ गुरुवर श्री गणपतिप्रसादजी चतुर्वेदी आर्थिक लाभ तो हुआ ही सबसे बड़ा लाभ तो यह हुआ कि वे शोक के महान् भारको वहन करने योग्य हो सके । पाठशाला पूर्ववत् मुखरित हो उठी। ___गुरुजीकी इस पाठशालासे सैकड़ों छात्र विद्वान बन कर निकल चुके हैं स्व० श्री कृष्णनारायण जी भार्गव, सेक्रेटरी म्यू० बोर्ड झांसी और श्री गंगानारायण जी भार्गव, भूतपूर्व एम० एल० ए०, चेयरमैन डिस्ट्रिक्ट बोर्ड झांसी, और श्री गंगानारायण जी भार्गव, डिपुटी कलक्टर तथा श्रीयुत व्यासजी, आदि कितने ही महानुभावोंने इस पाठशालाकी खुली भूमिपर बैठकर संस्कृत साहित्यका अध्ययन किया है। मऊ नगर और तहसील में कदाचित् ही कोई ऐसा संस्कृतका पंडित होगा, जिसने चौबे जीकी पाठशालामें अध्ययन न किया हो। नगरके जिन विद्वानोंसे इन्होंने अध्ययन किया था उनके पुत्र और पौत्र तक आपकी पाठशालामें पढ़कर पंडित बने हैं । इन पंक्तियों के लेखकने तो गुरुदेवके श्रीचरणोंमें रह कर अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं । खेतीकी देख-रेखके सिलसिलेमें उन्हींके साथ उनके 'हार'में, जो नगरसे छः मील की दूरी पर कैमाई ग्राममें है, जाकर कितनी ही हेमन्तकी निशाएं मचानके नोचे पयालमें लेटकर बितायी हैं। गुरुजी मचानके ऊपर पड़े पड़े रघुवंरा के श्लोक उठा रहे हैं और मुझसे व्याख्या करायी जा रही है । कभी-कभी तो इसी हार पर पूरी पाठशाला जम जाती थी। दोनों प.सलोंमें प्रायः पन्द्रह पन्द्रह दिन यहां गुरुजीको निवास करना पड़ता था। इससे साझेदार अधिक बेईमानी नहीं कर पाते थे और इन्हें खाने भर के लिए अन मिल जाता था। इस अवसर पर जितने छात्र वहां जाते थे सभीकी भोजन व्यवस्था गुरु-माता स्वयं करतो थों । जिन्हें इस महाप्रसाद पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उनका जीवन धन्य है। श्री चौबे जी के तीन पुत्र और दो कन्याएं हैं, सभी विवाहित हैं। दो वर्ष हुए श्रद्धया माताजी इहलीला समाप्त कर चुकी हैं । माताजीकी देख रेखमें एक बार आपकी आंखों का आपरेशन हो चुका था, अतएव शरीर यात्राके निर्वाह योग्य दृष्टि श्रापको प्राप्त है, इसके पूर्व एक वर्ष अन्धेपनका भी अनुभव करना पड़ा था। कनिष्ठ पुत्री के विवाहकी उलझनोंमें आपको बार बार बाजार जाना पड़ता था। दैवात् एक दिन सायंकाल को बाजार में ही दो गायों के बीच में पड़ जानेसे अापके पैरमें गहरी चोट आ गयी। फलतः तभीसे बड़ी कठिनाईसे चल पाते हैं । अब श्रवण शक्ति भी क्षोण हो चली है। फिर भी दो चार छात्र द्वार सेवन करते ही रहते हैं। और आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री शिवनारायण जी चतुर्वेदीके कारण उन्हें निराश नहीं होना पड़ता । गुरुदेवने अपने शिष्योंपर अनन्य स्नेह रखा। उन्हें रहने के लिए अपना एक पूरा मकान दे रक्खा था, छात्र उनका ईंधन भी जला लेते थे, कितने ही निमंत्रणोंमें श्रापका प्रतिनिधित्व आपके छात्र ही करते थे। उनका भजन पूजन भी लगवा देते थे, एवं कितनी ही प्रकारसे आपने अपने छात्रों को सहायता प्रदान की है। प्रायः आपके सभी छात्रों की भावनाएं लेखककी इन भावनाओंसे भिन्न न होंगी और सभी उन्हें अपना सर्वस्व दाता मानते हैं। ७३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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