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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ नगरके कुछ ईर्ष्यालु पंडितोंकी प्रेरणासे एकबार शास्त्रार्थ के लिए इन्हें आहूत किया। आह्वान-पत्रमें शास्त्री जीने समय 'स्याम' के चार बजे लिखा था । श्री चौबेजीने 'स्याम' शब्दसे ही इस शास्त्रार्थका पूर्वपक्ष उठाया और अपना वक्तव्य समाप्त कर शास्त्रीजीके वक्तव्यकी प्रतीक्षा करने लगे। श्री शास्त्रीजी चौबेजीकी सर्वतोमुखी प्रतिभा पर मुग्ध हो गये और अपने वक्तव्यमें इनकी प्रशंसा कर आपके घनिष्ठ मित्र बन गये। वि० १९८४ के लगभग नगरके समस्त कहारोंने वैश्यसमाज के किसी व्यवहारसे असन्तुष्ट हो उनके यहां पानी भरना छोड़ दिया । सारे नगरमें खलबली मच गयी परन्तु किसीको कोई उपाय नहीं सूझता था। अन्तमें श्रीचौबेजीकी शरण ली गयी। नुनाई बाजार में एक विशाल सभाकी आयोजना की गयी जिसमें वर्ण धर्मों पर लगातार चार घंटे तक चौबेजीने वक्तृता दी । इस वक्तृताका कहारों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने वहीं अपनी उक्त हड़तालकी समाप्ति घोषित कर दी। ऐसो कितनी ही इन्होंने समाजकी मौन किन्तु महत्वपूर्ण सेवाएं की हैं। सरलता और स्वाभिमान उनके जीवन के मुख्य गुण रहे हैं । घमंड तो आपको छू भी नहीं गया, दम्भ तो आपसे कोसों दूर रहता रहा । निस्वार्थ भावसे विद्यादानकी इस साधनामें बड़े बड़े प्रलोभनों और विघ्नोंने बाधक बनना चाहा परन्तु दृढ़वती श्री चौबे जी पर उनका कोई असर न हुआ । टो. एन. बी कालेज राठ, (हमीरपुर ) के संस्थापक श्री ब्रह्मानन्दजीने जब सर्व प्रथम अपना विद्यालय खोहीमें स्थापित किया था तब संस्कृताध्यापन के लिए श्री चौबेजीसे उन्होंने बड़ा आग्रह किया था परन्तु चौवेजीने वेतन लेकर अध्यापन करना पसन्द न किया । चौबेजीके श्रद्धालु भक्त तत्कालीन मेडिकल आफिसर डा. प्रतापचन्द्र राय आपकी पाठशालाको सरकारी आर्थिक सहायता दिलाने के लिए जब जब आग्रह करते थे तभी चौबेजी अपने दृढ़-बतका निश्चय आप पर प्रकट कर देते थे। वि० संवत् १९७४ की महामारीमें इन पर एक महान् संकट आ पड़ा था। आपके एकाको विद्वान् युवा-पुत्र श्री रामप्रसादजी चतुर्वेदी, पुत्रवधू और अग्रज सब एक साथ चल बसे थे। केवल आप दम्पति ही अवशिष्ट रहे थे । इस घटनाने चौबेजीको पागल बना दिया । माताजी उक्त संकट और आपकी इस शोचनीय अवस्थाके कारण चिन्तासे सूखकर कांटा हो गयीं। इस दुखी दम्पतिको शोक-सिन्धुसे उबारने वाले थे स्व. श्रीब्रह्मचारी महाराज जिनके नामसे सुखनईके उत्तरी तटपर आज भी एक सुन्दर आश्रम बना है । जब ब्रह्मचारीजीने चौबेजीकी विक्षिप्त दशाका समाचार सुना तो स्वयं इनके घर दौड़े आये । वयोवृद्ध, प्रतिष्ठित एवं सुप्रसिद्ध होने के कारण आपके सान्त्वना-पूर्ण वचनोंका श्री चौबेजी पर बड़ा असर पड़ा। इतना ही नहीं, चौबेजीका ध्यान अतीत चिन्तनसे हटानेके लिए उन्होंने अपने ही आश्रममें बड़े धूम धामसे जुलूस निकालकर इनका श्रीमद्भागवत पुराण बैठा दिया । नगरसे दूर होने पर भी इस कथामें सैकड़ों नर नारी जमा हं.ने लगे । एक मासके इस महान् अनुष्ठानमें संलग्न होने से श्री चौबेजीको पर्याप्त ५७६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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