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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ पतला, रक्त और मांस विहीन, कि आप उसके भीतर की हड्डियां उसी प्रकार गिन लें जिस प्रकार मकड़ी के जालेको गिन लेते हैं। एक निगाह ही में देखकर अनुभव कर लें कि विरही इसे कहते हैं। मकड़ी के जाले और पिंजढेकी, वह भी बांके पिंजड़े की जो उपमा दी है वह कितनी ठीक बैठती है इसे पाठक ही विचार करें। प्रेमीको आशा और निराशा के झूले में प्रायः भूलना पड़ता है । कंचन काया और मन-हीरा की दशा होती है, इसे इस पंथके पथिक ही भली प्रकार अनुभव करते हैं जब से भई प्रीति की पीरा, खुसी नई जौ जीरा । कूरा माथी भी फिरत है कमी आ गई रकत मांस की, फूंकत जात विरह की आगी इसे उतै मनन्दीरा बहौ हगन से नीरा । सुकता जात सरीरा । ओई नीम में मानत 'ईनरी पोई नीम को कीरा । , प्रेम-पंथके थपेड़े ईसुरी जी ने भी उठाये थे या नहीं इससे हमें सरोकार नहीं, किन्तु उन्होंने जैसे सजीव वर्णन इस विषयके किये हैं उनको सुनकर तबियत फड़क उठती है। नसीहत भी मिलती है कि अगर कंचन काया को कूरा-माटी ( कूड़ा और मिट्टी) और मन-हीरा को दुखी करना है तो इस कूचेमें कदम बढ़ाना । फिर तो एक बार कदम उठ चुकने पर वही कहावत हो जायगी, कि नीम का कीड़ा नीम ही में सुख मानता है। प्रेमिका के लिए प्रेमी पक्षियोंसे भी नीचे काठ पत्थर तक होने को धन्य मानता है यदि उनको प्रेमी और प्रेमिकाके मिलनका मुयवसर प्राप्त है तो बेकल प्रेमी प्रतीक्षा करते करते जब थक जाता है और सफल नहीं होता तब यही भावनाएं उसे शांत किया करती हैं। जवानीमें भी वह सोचने लगता है कि अब कितने दिन की जिंदगी है, अब भी प्रेमिका मिल जाय अन्यथा इसी प्रकार तरसते हुए संसारके बाजार से हाट उठते ही मनीराम उड़ न जांय, शरीर छूट न जाय । बिधना करी देह ना मेरी, रजउ के घर की देरी । आउत जात चरन की धूरा, लगत जात हर बेरी । लागी ज्ञान कान के वेंगर, बजन लगी बजनेरी । उठन चात अब हाट 'ईसुरी' बाट बहुत दिन हेरी । , प्रेमिका के घर की देहरी बनने की अभिलाषा प्रेमीको प्रेरित करती है और उसकी अपने शरीर से कहीं अधिक विशेषताएं बतलाता हुआ कहता है कि विधाताने ऐसा स्वर्ण-संयोग क्यों न उपस्थित किया जिससे आते और जाते हुए मुझे चरण-रज प्राप्त कर सकनेका तो सौभाग्य और सुअवसर तो मिलता ही रहता । ५६८
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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