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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ वृद्ध या विधवा होने पर लड़कों के शासन में रहती है । "न स्त्री स्वातन्त्र्य मर्हति " उसपर अक्षरशः लागू होता है । वैदिक धर्मशास्त्र के अनुसार भले ही बहुत कुछ सम्पत्ति ( स्त्रीधन) की अधिकारिणी हो पर बुन्देलखंड की नारीका कोई वास्तव में धन नहीं । विवाह के समय चढ़ाये गये जेवरात वस्त्र भी उसके पति न सिर्फ अपना समझते हैं वरन् जुआंरी पति सब कुछ दाव पर मर्जे में लगा देते हैं और विचारी नारी समझती है कि उस पर उसका अधिकार नहीं । सम्पत्ति के बंटवारे में उसे कभी कुछ नहीं मिलता और केवल रोटी कपड़ा पानेका उसका अधिकार है, वह भी उच्छिष्ट और परित्यक्त । उच्चवर्णीय विधवाकी स्थिति शोचनीय है । बालविवाह होने पर, पति के मर जाने पर बालिका को अपने लिए विधवा समझना कठिन हो जाता है । गुप्तप्रेम, व्यभिचार और भ्र ूणहत्याएं भी होती हैं। पर इस सबसे अधिक होती है शाश्वत निराशा और कभी कभी होता है विद्रोह । उस विद्रोहिणी नारीको समाज घृणा, उपेक्षा और तिरस्कार की दृष्टि से देखता है । पर वास्तव में वही अशिक्षित प्रकृतिरता युवती नारी स्वतन्त्रता और क्रान्तिकी प्रतीक है । निम्नवर्णकी नारी अपनी समकालीन तथोक्त उच्च वर्णोंकी नारीसे कहीं स्वतन्त्र और सुखी है । काछी, कोरी, ढीमर, वरई, नाई, धोबी, चमार तथा अत्पृश्य जातियोंमें जैसे वसोर और भंगी सबमें विधवा विवाह की प्रथा है । स्त्री प्रथम पतिके मर जाने पर तथा उसके द्वारा परित्याग किये जाने पर जिसे “छोड़ छुट्ठी" कहते हैं पुनः वरण की जा सकती है । इसे "घरन ।" कहते हैं । इस रक्खी हुई स्त्रीको भी नये पतिको अच्छी तरह रखना पड़ता । प्रायः इन जातियों में स्त्रियां सुखी होने पर सजातीय अन्य पुरुषके साथ भाग जाती हैं; फिर मुकदमा भी चलते हैं तो वापस ले ली जाती हैं । भगा ले जानेवाला पहले पति को “ब्याहगति" देकर अर्थात् पूर्व प्रणय का खर्च देकर फिर विवाह कर सकता है । इधर यह निम्नवर्णी नारी अपने पतिकी तरह श्रमजीवी है । वह भी घास काटती, लकड़ी बीनती खेतीका काम करती है । उसकी इस तरह निजकी सम्पत्ति होती है । उसका समाजमें इस कारण एक स्वतंत्र स्थान है । इधर इन सभी कही हुई जातियों में 'पैठुवा' की भी प्रथा है अर्थात् धनी स्त्री जिसका पति मर चुका हो अपने जातिके अविवाहित या विधुर पुरुष को वतौर लैंगिक साथी ( Sex Companion) रख लेती है । इस पुरुष का उसकी सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता । बस यह खाता पीता, काम करता है । उसकी खेती बारी देखता है। उसके द्वारा हुए बच्चे जायज माने जाते हैं । वह यदि प्रथम पतिसे बच्चे न हों तो पूरी सम्पत्ति पर अन्यथा आधी पर अधिकार पाते हैं । स्वतन्त्र भारत को शिक्षा दीक्षा के अभाव में विद्याहीना, कलाहीना, संस्कारहीना, दीना, दलिता, बुन्देलखंड की नारी को जागृत और स्वतन्त्र, सुखी और सम्पन्न करना होगा। उस समय उसकी उन स्वाभा विक, प्रकृतिदत्त शक्तियों का समुचित और सुगठित विकास होगा । जिनके स्वस्थ वीज उसके सहज रूप में आज भी स्पष्ट हैं। ५४८
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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