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________________ वर्णी अभिनन्दन-ग्रंथ प्रकार की जीवन की घटनाओं को व्यक्त करनेवाली मूर्तियां भी खुजराहा में दृष्टिगोचर होती हैं। इससे ज्ञात होता है कि खजुराहाके कलाकारका उद्देश जीवन के सभी अंगोंपर प्रकाश डालने का था। उसोकी दृष्टि जीवन की सम्पूर्णता की अोर थी । एक जगह तो पत्थर ढोते हुए मजदूरों तक का चित्रांकन किया गया है । इस प्रकार खजुराहा के मन्दिर अपने समय की एक इनसाइकिलोपीडिया के स्वरूप हैं । शिल्पकारों ने जो कौशल दिखलाया है उसका अनुकरण आज असम्भव सा प्रतीत होता है । पत्थर की तो उन्होंने मोम ही बना डाला था। उसे अपने मनोनुकूल ऐसा ढाला है जैसा की हम धातुओं को नहीं ढाल सकते । न जाने उनके पास कौन से अौजार थे और कौन सी लगन । एक साथ जब हजारों शिल्पकार छेनी और टाकियोंसे पत्थर पर काम करते होंगे तब कैसे संगीत का प्रादुर्भाव होता होगा, हम कल्पना नहीं कर सकते । अाज खजुराहा खडहर के रुप में पड़ा हुआ है तब भी वहां के भूखंडमें उसी युग की मधुर स्मृति लिये शीतल वायु चलती है । उन खंडहरों में घूमने में, मन्दिरों के झरोखों में बैठकर उस युग की कल्पना करने में, ऐसा आनन्द आता है जैसे हम उसी युगमें पहुंच गये हों । वर्तमान् जीवन की सुध बुध ही सी भूल जाती है । वास्तव में खजुराहा देखने योग्य है । खजुराहा जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन हरपालपुर तथा महोबा हैं। इन दोनों से छतरपुर से होते हुए ठीक खजुराहा तक मोटर लारियां जाती हैं । ५३६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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