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वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ
कहने का तात्पर्य यह है कि विन्ध्याचल बड़े बड़े जंगलों से युक्त है । विशालवृक्षों एवं कुसुमित लतागुल्मों से आच्छादित है । उस पर चारों ओर सदैव हृष्ट पुष्ट स्वर्णमृग, वाराह, भैंसे, बाघ, सिंह, बन्दर, खरहे, भालू और सियार विचरण करते रहते हैं ।
और विन्ध्यके चरणों में लहराती हुई नर्मदा ! "वह तो ऐसी प्रतीत होती है मानो हाथी के शरीर पर श्वेत मिट्टी से रेखाएं सजाकर श्रंगार किया गया हो । रेवा (नर्मदा का जल वन्य गजोंके निरंतर स्नान के कारण मदगंध से सुरभित रहता है और उसकी धारा जम्बू कुंजों में विरमती हुई धीरे धीरे बहा करती है । उसके कछारोंमें वर्षाके प्रारम्भमें पीत हरित केशरोंवाले कदम्ब कुसुमोंपर मधुकर गूंजते रहते हैं । मृग प्रथम बार मुकुलित कंदलीको कुतरा करते हैं और भूमिकी सोंधी गंधको सूंघकर हाथी मस्त हो जाते हैं ।
"यहां का प्रत्येक पर्वत शृंग अर्जुन ( कवा) की गन्धसे सुरभित रहता है। श्वेत पागों और सजल नयनों से मयूर यहां नवीन मेघका स्वागत करते हैं । "
अमरुक की एक नायिका चैतकी उजली रातमें मालती गंध से आकुल समीरण में प्रियतमकी निकटवर्तिनी होकर भी अपने पुराने प्रच्छन्न संकेत स्थल रेवाकी कछार में स्थित वेतसी तरुके नीचे जानेको बार बार उत्कंठित हो उठती है ।
विन्ध्याचल सब भारतीय पर्वतोंका गुरु ( ज्येष्ठ ) है । भूतत्ववेत्तात्रों का मत है कि भारतवर्ष में विन्ध्य अरावली और दक्षिणका पठार ही सबसे पुरानी रचना है। इनका विकास अजीब कल्प ( Azoic Age) में पूरा हो चुका था । उत्तर भारत, अफगानिस्तान, पामीर, हिमालय और तिब्बत उस समय समुद्र के अन्दर थे । खटिका युग ( ) के भूकम्पोंसे हिमालय आदि तथा उत्तर भारतीय मैदान चोटियोंपर भी खटिका युगके जीवों और डावला (अरावली ) की भीतरी चट्टानों में
के कुछ अंश ऊपर उठ आये । हिमालयकी सबसे ऊँची वनस्पतियों के अवशेष पाये जाते हैं जब कि विन्ध्याचल और जीवों की सत्ताका कोई चिन्ह नहीं मिलता ।
प्राकृतिक सौन्दर्य के अतिरिक्त विन्ध्याचलका धार्मिक महत्व भी कम नहीं है । विन्ध्यवर्ती तीर्थों की महिमा पुराणकारोंने मुक्तकंठ से गायी है । पार्श्वनाथगिरि, विन्ध्यवासिनी, नर्मदा, अमरकंटक, ताम्रकेश्वर श्रादि गणित तीर्थोंको विन्ध्य अपनी विशाल गोदमें आश्रय दे रहा है । मत्स्य पुराण में गंगा, यमुना और सरस्वती से भी अधिक नर्मदाकी महिमाका गुणगान किया है। " कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है ।"
“यमुनाका जल एक सप्ताह में, सरस्वतीका जल तीन दिनमें, गंगाजल उसी क्षण और नर्मदा जल दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देता है ।"
आगे चलकर अमरकंटककी महिमामें कहा गया है - "अमरकंटक तीनों लोकों में विख्यात है । ५२४