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________________ जैनसमाजका रूप - विज्ञान श्री बा० रतनलाल जैन बी० ए०, एल-एल० बी० जैन समाज प्राचीन कालमें वैभव पूर्ण था, यह बात प्राचीन ग्रन्थोंसे भलीभांति सिद्ध है । ऐतिहासिक युग के प्रारंभ में भी जैन समाज उन्नत अवस्था में था । भगवान महावीर के समय में अनेक राजा जैन धर्मावलम्बी थे । महावीर भगवान के पश्चात भी मगधाधिपति सम्राट् चन्द्रगुप्त व कलिंग देश के अधिपति सम्राट खारवेल जैन धर्मावलम्बी थे । उत्तरी भारतमें तीसरी चौथी शती से जैन धर्मका ह्रास प्रारंभ हुआ तथापि बारहवीं शती तक इसे राज्यधर्म होनेका सौभाग्य प्राप्त रहा जैसा कि दक्षिण एवं गुजरात के इतिहास से सिद्ध है । बारहवीं शती के अन्त से लेकर उन्नीसवीं शती के अन्ततक का सात सौ वर्षका दीर्घकाल भारतवर्ष के लिए महान विप्लव, दमन तथा ह्रासमय रहा है। जैन, बौद्ध, वैदिक, आदि प्रचलित धर्मोंको बड़ा धक्का लगा । आक्रमण, दमन, और अनाचारमय वातावरण में हिंसामय जैनधर्मका ह्रास अधिक वेगके साथ हुआ । देश भर में हिंसा प्रति-हिंसाकी अग्नि प्रज्वलित हो उठी। जिसकी चरम सीमा औरंगजेबकी कट्टरता, अन्धविश्वास एवं भारत वर्ष के प्रचलित धर्मों के प्रति शत्रुता तथा उसकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न मरहटे व सिक्ख वर्गों के निर्माण में हुई । मरहठे व सिक्ख पूर्ण संगठित भी नहीं होने पाये थे कि अंगरेजी राज्य ने अपने देशप्रेम, संगठन, आदि कुछ सद्गुणों के कारण समस्त भारत पर अपनी सत्ता अठारहवीं शतीके प्रारंभ में ही स्थापित कर ली ; किन्तु इनकी राजनैतिक निष्ठुर लूट तथा दमन नीतिको भी देशने पहिचाना तथा १८८५ में भारतीय कांग्रेसको जन्म दिया । कांग्रेसके जन्म के कुछ काल बाद ही जैन समाज के नेताओं ने संगठनकी श्रावश्यकता अनुभव करके 'भारतवर्षीय जैन महासभा की नींव डाली । कितने ही काल तक महासभाने जैन समाज में जाग्रति उत्पन्न की। कुछ समय पश्चात प्रगतिशील व स्थितिपालक दो दल स्पष्ट प्रतीत होने लगे । सन् १९११ में इन दोनों दलों में विरोध इतना बढ़ गया कि प्रगतिशील सुधारकोंको जैन महासभ से अलग होना पड़ा। महासभा स्थितिपालकों के हाथमें पहुंच गयी । तथापि बैरिस्टर चम्पतरायजी ने जैन महासभा में सम्मिलित होकर नवजीवन उत्पन्न करनेका प्रयत्न किया किन्तु स्थितिपालकों के सामने उनकी नीति असफल है, यह फरवरी १९२३ के देहली जैन महोत्सव में स्पष्ट हो गया । ५१४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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