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________________ भारतीय ज्योतिषके इतिहासके जैन-स्रोत गंज में श्री सेठ चिरंजीलाल बड़जात्या की निगरानीमें जारी है और उसका मुखपत्र अंग्रेजी जैनगजट अपने ४१ वें वर्ष में चल रहा है। तथापि जिनधर्म का उद्योत इस पैवन्द लगानेसे नहीं होगा । वह चाहता है भीषण त्याग और तपस्या मय आचरण । जैनधर्म की सच्ची जय उस समय हो गी जिस समय हम दुनियाके सामने ऐसे आदर्श जैनधर्मवलम्बी पेशकर सकें गे जो नागरिक होते हुए सत्यके उपासक होंगे । स्वप्नमें भी झूट वचन उनके मुँहसे नहीं निकलेगा, उनका आचार-विचार-व्यवहार अहिंसामय होगा, वह पराई वस्तु ग्रहण नहीं करेंगे, धोकेबाजी की परछांई भी उनके व्यवहार में न पड़ने पायगी, उनकी तारीफमें यह कहना अनुचित या अतिशयोक्ति न हो गा कि 'मनमें होय सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन से करिये' जैनी म्याद्वाद सिद्धान्त अपने व्यवहारसे प्रतिपादन करके दिखा देंगे । अनेकान्त तब केवल पुस्तकों का विषय न रह जावे गा, शब्द तथा वाक्य योजना तक ही सीमित न रहेगा. अपितु उसका सजीव उदाहरण लोकके सम्मुख उपस्थित हो जाय गा । स्याद्वाद मनुष्य-जीवन की दृष्टि होगा। ___ कर्म-सिद्धान्त और अहिंसाधर्मकी भी यही हालत होगी। ‘सत्त्वेषु मैत्री', गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेशु जोवेषु कृपापरत्व, माध्यस्थभावं विपरीतबतौ" के जीते जागते उदाहरण संसार में दिखायी देंगे। हमारी भारतीय दुनियासे दुःख दर्द, ईर्षा, छीना झपटी, लड़ाई, दंगा, पारस्परिक संहार, पीड़न आदि नरकके दृश्य अदृश्य हो जावेगे। लोकमें सुख और शान्ति का प्रसार होगा, नया संसार बस जायगा । -p-DODIA ५१३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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