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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ ५-वृत्तके त्रिज्य-खण्डका क्षेत्रफल प्राधे चाप तथा त्रिज्यके गुणनफलके बराबर होता है । (श्राकृतिह) (आकृति १०) रचना-अ ब स त्रिज्यखंडको ( आ. ९) अनेक ( संभवतः समान ) छोटे त्रिज्य खंडोंमें बांटो और इनके चाप इतने छोटे हों कि उन्हें सीधी रेखासे भिन्न समझना भी कठिन हो । इस प्रकार त्रिज्यखंड अनेक त्रिभुजोंमें विभक्त हो जाता है। अब इन त्रिभुजोंको बस आधार पर इस तरह रखो कि उनके आधार एक दूसरेसे सटे रहें (आ. १०) और उनके शीर्षों को इस प्रकार चलायो कि वे अ बिन्दुपर आ मिलें । इस प्रकार त्रिज्यखण्डका क्षेत्रफल अब स त्रिभुजके बराबर ही आता है। और बस अाधारकी लम्बाई चाप तथा ऊंचाई त्रिज्यखण्डके त्रिज्यके समान होती है। विकृतिका तृतीय नियम-यदि वृत्तके तृज्यखण्डको ऐसे त्रिभुजमें परिवर्तित किया जाय जिसके अाधार और ऊंचाई त्रिज्यखण्डके चाप तथा त्रिज्यके बराबर हों तो क्षेत्रफल तदवस्थ ही रहता है। कोणके द्विभाजकको केन्द्र पर स्थित रखके तथा वृत्ताकार चापको सीधा करके यह श्राकृति परिवर्तन किया जाता है। ६–परिधिकी आधी लम्बाईको त्रिज्यसे गुणा करनेपर वृत्तका क्षेत्रफल पाता है। रचना-त्रिज्यके सहारे (त्रिज्य परसे ) वृत्तको काटकर इसे त्रिकोण रूपसे फैला दीजिये तो वृत्तका क्षेत्रफल इस त्रिकोण के समान हो गा। क्योंकि अाधार परिधिके और ऊंचाई त्रिज्यके बराबर होनेसे उक्त फल स्वयं सिद्ध है। (ब्लोम) उपसिद्धान्त--अ तथा ब त्रिज्यायुक्त दो समकेन्द्रक वत्तों तथा दोनों त्रिज्योंसे
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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