SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय गणितके इतिहासके जैन-स्रोत रचना -- ( श्राकृति ६ में) सद पर बफ लम्ब डालने से बने ब स फ भागको काटकर दूसरी तरफ ए द रूप से जोड़ दीजिये इस प्रकार बनी श्राकृति श्रायत होगी और प्रमेय निकल श्रायगा । श्राकृति परिवर्तनका प्रथम नियम- समानान्तर चतुर्भुजकी एक भुजाको अपनी ही सीध में चलाने से उसका क्षेत्रफल तदवस्थ रहता है । यथा अब सदमें स द भुजाको अपनी ही सीध में बढ़ाते हुए एफ रूपमें ले आये हैं और इस प्रकार बना आयत (ए अ व फ) क्षेत्रफल में अ ब स द के समान है । ३ – आधारकी आधी लम्बाई में ऊंचाईका गुणा करनेसे त्रिभुजका क्षेत्रफल आता है । यह निष्कर्ष सत्य है क्यों कि उसी आधार पर बने उतनी ही ऊंचाई के समानान्तर चतुर्भुजसे त्रिभुज आधा होता है । श्राकृति परिवर्तनका द्वितीय नियम - यदि त्रिभुजका शीर्ष आधारके समानान्तर हटाया जाय तो त्रिभुजका क्षेत्रफल तदवस्थ ही रहता यथा श्राकृति ७ है । ( श्राकृति ७ ) ४ - आधारकी श्राधी लम्बाई में पक्ष ( फलक Face ) को जोड़कर ऊंचाई से गुणा करने पर समलम्बका क्षेत्रफल आता; यथा श्राकृति ८ है । द ( श्राकृति ८ ) इस प्राकृतिकी रचना से परिणाम निकलता है कि श्राकृति परिवर्तनका सिद्धान्त समलम्बके लिए भी काम आ सकता है । अर्थात् समलम्बकी एक समानान्तर भुजाको अपनी सीधमें बढ़ानेसे समलम्बके क्षेत्र पर कोई प्रभाव नही पड़ता है । ६३ ४९७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy