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________________ वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ उत्तरायण और दक्षिणायन के तिथि, नक्षत्र एवं दिनमान आदिका साधन किया गया है। इसके अनुसार युगका आरम्भ माघ शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्य और चन्द्रमाके धनिष्ठा नक्षत्र सहित क्रान्तिवृत्त में पहुंचने पर माना गया है । वेदाङ्ग ज्योतिषका रचनाकाल कई शती ई० पू० माना जाता है । इसके रचनाकालका पता लगाने के लिए विद्वानोंने जैन ज्योतिषको ही पृष्ठभूमि स्वीकार किया है । वेदाङ्ग ज्योतिषपर उसके समकालीन षट्खण्डागममें उपलब्ध स्फुट ज्योतिष चर्चा, सूर्यप्रज्ञप्ति एवं ज्योतिषकरण्डक आदि जैन ज्योतिष ग्रन्थोंका प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है । जैसा कि 'हिन्दुत्व' के लेखक के "भारतीय ज्योतिष में यूनानियों की शैलीका प्रचार विक्रमी सम्वत् से तीन सौ वर्ष पीछे हुआ | पर जैनों के मूल ग्रन्थ अङ्गों में यवन ज्योतिषका कुछ भी आभास नहीं है । जिस प्रकार सनातनियोंकी वेदसंहिता में पञ्चवर्षात्मक युग है और कृत्तिकासे नक्षत्र गणना है उसी प्रकार जैनोंके अङ्ग ग्रन्थों में भी है; इससे उनकी प्राचीनता सिद्ध होती है २ ।" कथन से सिद्ध है । सूर्यप्रज्ञप्तिमें पञ्चवर्षात्मक युगका उल्लेख करते हुए लिखा है "श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन सूर्य जिस समय अभिजित् नक्षत्र पर पहुंचता है उसी समय पञ्चवर्षीय युग प्रारंभ होता है ।" अति प्राचीन फुटकर उपलब्ध षट्खण्डागमको ज्योतिष चर्चासे भी इसकी पुष्टि होती है । वेदाङ्गज्योतिषसे पूर्व वैदिक ग्रन्थोंमें भी यही बात है । पञ्चवर्षात्मक युगका सर्व प्रथमोल्लेख जैन ज्योतिष में ही मिलता है। डा० श्यामशास्त्रीने वेदाङ्गज्योतिष की भूमिका में स्वीकार किया है कि वेदाङ्गज्योतिष के विकास में जैन ज्योतिषका बड़ा भारी सहयोग है विना जैनज्योतिष के अध्ययन के वेदाङ्ग ज्योतिषका अध्ययन अधूरा ही कहा जायगा। प्राचीन भारतीय ज्योतिष में जैनाचार्योंके सिद्धान्त अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हैं । जैन ज्योतिष में पौर्णमास्यान्त मास गणना ली गयी है, किन्तु याजुष - ज्योतिष में दर्शान्त मास गणना स्वीकार की गयी है । इससे स्पष्ट है कि प्राचीन कालमें पौर्णमास्यान्त मास गणना ली जाती थी, किन्तु यवनोंके प्रभाव से दर्शान्त मास गणना ली जाने लगी। बादमें चान्द्रमासके प्रभावसे पुनः भारतीय ज्योतिर्विदोंने पौर्णमास्यान्त मास गणनाका प्रचार किया लेकिन यह पौर्णमास्यान्त मास गणना सर्वत्र प्रचलित न हो सकी। प्राचीन जैन ज्योतिषमें हेय पर्व तिथिका विवेचन करते हुए अमके सम्बन्ध में बताया गया है" कि एक सावन मासको दिन संख्या ३० और चान्द्रमासकी दिन संख्या १ स्वराक्रमेते सोमा यदा साकं सवासवी। स्यात्तदादि युगं माघस्तपरशुक्लोऽयनं हूयुदक ।। प्रपद्ये ते श्रवादी सूर्याचन्द्रमसावुदक । सर्प दक्षिणा करतु माघश्रावणयोरसदा || ( वेदाङ्ग ज्योतिष पृ० ४-५ ) २ हिन्दुत्व पृ० ५८१ । ३ " सावण बहुल पडिवए वालवकरणे अभीइ नक्खते । सम्वत्थ पडम समये जु+स्स आई वियाणाहि ॥ " ४ वेदाङ्गज्योतिष की भूमिका, पृ० ३ । ५ – सूर्य प्रज्ञप्ति, पृ० २१६-१७ ( मलयगिर टीका ) । ४७०
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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