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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ शैव या शाक्त लोगोंके ग्रन्थोंमें गृहीत हैं । जैन सन्त अगणित आत्माओंमें विश्वास करते हैं । ये आत्मा मुक्त होकर अलग वर्तमान रहते हैं परन्तु उनका गुण एक होनेसे वे 'एक' कहे जा सकते हैं । यह पद ज्ञानसे प्राप्त हो सकता है और ज्ञानका सबसे बड़ा साधन चित्तशुद्धि है। जोइन्दुने परमात्मप्रकाशमें (२७० ) कहा है कि हे जीव ! जहां खुशी हो जानो और जो मर्जी हो करो किन्तु जब तक चित्त शुद्ध नहीं होता तब तक मोक्ष नहीं मिलनेका जहिं भावइ तहिं जाइ जिय, जं भावइ करि तं जि । केम्बइ मोक्ख ण अत्थि पर , चित्तह शुद्धि ण जंजि । और दान करनेसे भोग मिल सकता है, तप करनेसे इन्द्रासन भी मिल सकता है परन्तु जन्म और मरणसे विवर्जित शाश्वत पद पाना चाहते हो तो वह तो ज्ञानसे ही मिल सकता है दाणिं लम्भइ भोउ पर, इंदत्तणु पि तवेण । जम्मण मरण विवजियउ, पउ लब्भइ णायेण ॥ (प० प्र० २-७२) जब यह मोक्ष प्राप्त हो जाय गा तब आत्मा ही अन्य आत्माओं के समान 'परम'-आत्माका पद प्राप्त कर लेगा । कहना नहीं होगा यह मत शैव, शाक्त साधकोंके मतसे भिन्न है, परन्तु भिन्नता पंडितोंके शास्त्रार्थका विषय है। साधारण जनताके लिए यह बात विशेष चिन्तित नहीं करती कि मरनेके बाद वह चिन्मय सत्तामें विलीन हो जायगा या अलग बना रहेगा, या एकदम लुप्त हो जायगा । मरण और जन्मके चक्कर में फिर नहीं पड़ना पड़ेगा, इस विषयमें दो मत नहीं है। इसीलिए साधारण जनताके लिए यह उपदेश ही काफी है कि दान और तपकी अपेक्षा ज्ञान और चित्तशुद्धि श्रेष्ठ हैं । वस्तुतः इन रचनात्रोंमें अधिकांश पद ऐसे हैं जिनपरसे 'जैन' विशेषण हटा दिया जाय तो वे योगियों और तांत्रिकोंकी रचनाओं जैसी ही लगें गी। परवर्ती सन्तोंकी रचनाओंसे तो इनमें अद्भुत साम्य है। जब जैन साधक जोइंदु कहते हैं कि देवता न तो देवालयमें है. न शिलामें, न चंदन प्रभृति लेपन पदार्थों में, और न चित्रमें, बल्कि वह अक्षय निरंजन ज्ञानमय शिव तो समचित्तमें निवास करता है देउ ण देवल णवि सिलए, ण वि लिप्पइ णवि चित्ति । अखउ णिरअणु णाणमउ, सिउ संटिंउ समचिति ॥ . (परमात्मप्रकाश १-१२३) तो यह भाषा कबीर और दादू जैसे सन्तोंकी लगती है। निस्सन्देह ये जैन साधक परवर्ती भक्ति-साहित्यके पुरस्कर्ताओंमें गिने जायगे । ४६६
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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