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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ रहा है; धरणी एवं आकाश में कम्पन जारी है, समस्त शून्यताको भरदेने वाला गर्जन सुनायी पड़ धरणी श्राकाशा थर हरै गरजै सुन के वीच ॥ ( साखी ग्रन्थ, सुरमा अङ्ग, १२३ ) इतनी अड़चनोंके होते हुए भी युग-युगमें भारतीय साधकोंके दल अपनी मैत्री एवं समन्वयकी विराट साधनाको लेकर निर्भयता के साथ वीरोंकी तरह अग्रसर हुए हैं। बाहरकी बाधाएं एवं घरका विरोध बीच बोचमें उनके पथमें बाधा स्वरूप होकर अवश्य खड़े हुए हैं लेकिन उनकी साधना की अग्रगतिको सर्वदा के लिए रोक न सके । विधाताकी वह महान् आदेश वाणी अभी भी जिनके कानोंमें पहुंचेगी उनकी प्रतिहत गति में किसी तरहको विधि निषेध, कोई दुःख विपद बाधा, जरासा भी उनके अग्रगमन में रुकाव न डाल सकेगा । ४६४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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