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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ उक्त निष्कर्षो तक पहुंचने के समय तक युझे यादवप्रकाश कृत 'वैजयन्ती' कोशका पता नहीं था जो आचार्य से थोड़े समय पूर्व ल० १०५० ई० में बना था। आचार्यकी जीवनी में श्री व्यूलरने — शेषाख्य नाममाला; अभिधानचिन्तामणिकी पूरक है । जिसमें जयन्तप्रकाशकी वैजयन्ती के उद्धरणोंकी भरमार है ( पृ०९१९ टि० ७३ ) " । "अभिधान चिन्तामणिके साथ पुनः प्रकाशित नाममा ला भी यादवप्रकाशके प्राचीनतर ग्रन्थ वैजयन्तीसे अत्यधिक मिलती जुलती है। तथा इससे बहुसंख्याक दुर्लभ शब्द आचार्यने लिये हैं ।" आदि लिखकर सिद्ध किया है कि आचार्य यादवप्रकाशके ऋणी हैं। यदि श्री व्यूलरका यह कथन सत्य है तो हमारे अनुमान से उपर्युल्लिखित अश्वनाम भी आचार्य ने वैजयन्तीके २ भूमिकाण्ड क्षत्रियाध्याय के ६६ - १०६ श्लोकोंसे लिये हैं । यादवप्रकाश 'अश्वानामागमे' पद द्वारा किसी अश्व शास्त्रका संकेत करते हैं जो कि जयदत्तका अश्वायुर्वेद ही हो सकता है जिसमें वर्णानुसारी अश्वनाम तृतीय अध्यायके १०० से ११० श्लोकोंमें दिये हैं। क्योंकि नकुलकृत अश्वचिकित्सित, वाग्भटकृत अश्वायुर्वेद, कल्हणकृत सारसमुच्चय तथा भोजकृत युक्तिकल्पतरू ग्रन्थों में कोकाह, खुड़ाह, आदि नाम नहीं मिलते हैं । अतः सम्प्रति यही अनुमान होता है कि यादवप्रकाशने वर्णानुसारी अश्वनामोंको संभवतः जयदत्तके 'अश्ववैद्यक' से ही लिया है। फलतः अश्वशास्त्र के विकास में कालक्रम से सर्वप्रथम अश्ववैद्यक कार श्री जयदत्त ( १००० ई० ) से पहले होंगे तथा उनके बाद यादव प्रकाश ( १०४० ई० श्र० हेमचन्द्र ( १०८८ - ११७२ ई० ) तथा सोमेश्वर ( ११३० ई० ) आवें गे । संभवतः आचार्य ने अपने कोशको किसी विशेष अश्वागम अथवा अश्वागमों के आधार से नहीं बनाया था, अपितु उनका आधार प्राचीनतर कोश ही थे जैसा कि उनके द्वारा किसी अवशास्त्रका उल्लेख नहीं किये जाने से स्पष्ट है । फारसी तथा अरबी घोड़ोंका भारत व्यापी व्यवसाय, देश के समस्त राजाश्रोंकी सेनामें उनका प्राधान्य तथा चार संस्कृत कोशकारों द्वारा उनके नामोंका अपने ग्रन्थों में दिया जाना एक ही समयकी घटना है। इन चार कोशकारोमेंसे भी जयदत्त तथा सोमेश्वर स्वयमेव शासक थे । अपने ग्रन्थकी प्रशस्तिमें जयदत्त अपने आपको 'महा सामन्त' कहते हैं यद्यपि इनका पूर्ण परिचय अत्र तक स्थिर नहीं हुआ है | और सोमेश्वर अत्यन्त संस्कृत चालुक्य शासक थे जैसाकि उनके विशाल एवं बहुमुख सांस्कृतिक ग्रन्थ 'मानसोल्लास' से स्पष्ट है। भारतीय कोश- साहित्यको समय समयपर हुए निष्णात कोशकार विद्वानोंने अपने समय में प्रचलित विदेशोद्भूत शब्दोंको भी तत्तद कोशों में लेकर हमारे शब्दभण्डारकी श्रीवृद्धि की है । जैसा कि १. श्रीमणिलाल पटेल कृत अंग्रेजी अनुवाद पृ०३६ । २. गुष्टाव ओपर्टका संस्करण (मद्रास १८९३) पृ० ११२ । ४५४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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