SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय अश्वागम श्री पी० के० गोडे, एम० ए० आचार्य हेमचन्द्रकी (१०८८ - ११७२ ई०) अभिधान - चिन्तामणि के भूमि खण्ड में निम्नपद्य हैं“सिते तु कर्क कोकाहौ खोङ्गाहः श्वेतपिङ्गले ॥ ३०३|| पीयूषवर्णे सेराहः पीते तु हरियो हये । कृष्णवर्णे तु खुड्गाह क्रियाहो लोहितो हयः || ३०४॥ नीलस्तु नीलकोऽथ त्रियूहः कपिलो हयः । वोल्लाहरूवयमेव स्यात् पाण्डुकशेर बालधिः || ३०५ || उराहस्तु मनाक्पाण्डुः कृष्णजङ्घोभवेद्यदि । सुसाहको गर्दभाभः चोरखानस्तु पाटलः || ३०६ || कुलाहस्तु मनापीतः कृष्णः स्याद्यदि जनुनि । उकनाहः पीतरक्तच्छायः स एव तु क्वचित् ॥ ३०७॥ कृष्णरक्तच्छविः प्रोक्तः शोणः कोकनदच्छविः । हरिकः पतिहरितच्छायः एव हालकः || ३०८ || पङ्गुलः सितकाचाभः हलाहश्चित्रितो हयः ।” चुका हूं कि आ० हेमचन्द्र द्वारा दत्त इनमें वर्णके अनुसार कोकाह, खोङ्गाह, सेराह, खुङ्गाह क्रियाह, त्रियूह, बोल्लाह, उराह, सुसहक, वोरुखान, कुलाह, उकनाह, हलाह, आदि नाम आये हैं जिन्हें आचार्यने 'देशी', शब्द कहा है । उनका इन शब्दोंका विग्रह कहीं कहीं सर्वथा काल्पनिक प्रतीत होता है यथा‘वैरिणः खनति वोरुखानः । अपने एक पूर्व लेख में मैं सिद्ध कर अश्वनामों में से कितने ही नाम जयदत्त अश्वायुर्वेद 3 अध्याय तृतीय ( सर्वलक्षणाध्याय ) तथा चालुक्य नृपति सोमेश्वर कृत ल० ११३० ई० ) मनसोल्लास के 'वाजि -वाह्या लि-विनोद' ( पोलो ) में भी उपलब्ध हैं । यद्यपि आचार्य इन शब्दोंको देशी कहते हैं तथापि मुझे ये विदेशों से ये प्रतीत होते हैं । ई० की ८ वीं तथा १३ वीं शतीके मध्य भारत में बहुलतासे लाये गये घोड़ों के साथ ही ये नाम आये होंगे। ये कब किसके द्वारा आये, आदि पर फारसी और अरबीके विद्वान प्रकाश ST सकते हैं । इतना निश्चित है कि आचार्यने सावधान कोशकारके समान उस समय प्रचलित इन शब्दों को लेकर अपने कोश तथा भारतीय भाषाको कालको दृष्टिसे सर्वाङ्ग सम्पन्न किया था । १, "खोङ्गहादयः शब्दाः देशीप्रायाः " २, प्रेमी अभिनंदनग्रन्थ पृ० ८१ । ३, बिवलों का इण्डिका, कलकत्ता ८८६ । ४५३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy