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________________ एक अज्ञात कनड़ नाटककार द्वारा संस्कृत रूपान्तर किये गये पंचतन्त्रके कन्नड भाषान्तरका काल ६५३ शालिवाहन सं० (सोमवार ८ मार्च १०३१ई० ) होगा। ____ वाल्मीकि, व्यास, विष्णुगुप्त, गुणाढय, वररुचि, कालिदास, भवभूति आदिका स्मरण करते हुए कवि दुर्गासिंह इनके बाद ही कन्नड़ कवियोंका भी स्मरण करते हैं । जिसके पुष्ट आधारपर हम श्री विजय, कन्नमय्य, असग, मानसिज, चन्द्र भट्ट, पोन्न, पम्प, गगनांकुश तथा कविताविलासको उनका पूर्ववर्ती मान ही सकते हैं । इनमें श्री असग संस्कृत कवि भी थे जैसा कि उनके प्रकाशित वर्द्धमानचरित्र' तथा शान्तिपुराणसे स्पष्ट है । “संवत्सरे दशनवोत्तरवर्षयुक्त ।१०४।...ग्रन्थाष्टकं च समकारि जिनोपदिष्टम् ।१०५।" पद्यों द्वारा कविने “वर्धमानचरित' के रचना समयकी सूचना दी है । अर्थात् 'चोल राजा श्रीनाथके राज्य कालमें विमलानगरीमें विद्या पढ़कर मैंने ९१० संवतमें यह ग्रन्थ लिखा था । पोन्न ( ९५० ई०) अपने शान्तिनाथ पुराणमें कन्नड़ कवितामें अपनेको असगके समान लिखते हैं । फलतः वर्धमानच रतका समाप्ति काल सं० ९१० 'शालिवाहन' न होकर 'विक्रम' ही हो सकता है। फलतः ८४६ ई०३ तक राज्य करनेवाले राजा श्रीनाथ चोल कोकिल्लि अपरनाम श्रीपति होंगे तथा रचनाकाल ८५३-४ ई० होगा । छन्दकी सुविधाके कारण श्रीपतिका श्रीनाथ हो जाना तो सुकर है ही। असगकी स्तुति करनेके ठीक पहले दुर्गसिंह “अब तक कोई ऐसा सुकवि न हुआ है और न होगा जिसकी तुलना कन्नमय्यसे की जा सके। जिनका मालवी [ ती ]-माधव विद्वानोंके हृदयको मन्त्रमुग्ध करता है ।' अर्थमय पद्य द्वारा कन्नमय्यका स्मरण करते हैं । राष्ट्रकूट नृपति नृपतुंग (८१४-७७ ई) द्वारा रचित कहे जानेवाले लक्षणग्रन्थ कविराजमार्ग में कन्नड़ कवि श्रीविजयका उल्लेख है। श्रीविजयको पञ्चतन्त्रकार दुर्गसिंहने भी स्मरण किया है। यद्यपि असग तथा कन्नमय्यका कविराजमार्गमें उल्लेख नहीं है तथापि कन्नमय्य न्यूयाधिक रूपमें नृपतुगके समकालीन रहे होंगे क्योंकि उनके कुछ ही पहले असगकी मृत्यु हुई थी फलतः कन्नमय्य द्वारा 'मालवि-माधव' का रचनाकाल ८०० ई० कहा जा सकता है ' दुर्भाग्यवश यह नाटक अनुपलब्ध है फलतः विपुल कन्नड़ साहित्यमें प्रकृत श्लोकके सिवा कन्नमय्य का उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलता है । मालवि-माधव नाम ही संस्कृत नाटक मालती-माधवका स्मरण दिला देता है। और उसके साथ, साथ करुण रसावतार महाकवि भवभूतिकी अमर कीर्ति भी मूर्तिमान हो उठती है । ऐसाभी स्पष्ट १. श्री रावजो सरवारम दोषी शोलापुर द्वार। प्रकाशित। २, “कन्नड़ कवितेयोल असगम् " ३, दक्षिण भारतमें ऐतिहासिक लेख पृ० ३४० । ४, “परम कवीश्वर चेती हर मैबिनमेसेव मालवी माधवं । विरचिसिद कन्नमय्यं वरमागं सुकवि बगेबोडिन्नु मुन्न ।" ४५१
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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