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________________ पाइय साहित्यका सिंहावलोकन कोशकार - शोभन मुनिके भाई, तिलकमञ्जरीके कर्ता धर्मपालने अपनी कनिष्ठा बहिन सुन्दरीके लिए सम्वत् १०२९ में “पाइय-लच्छि नाममाला' बनायी थी । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि (सं० ११९५ १२६७ ) दूसरे पाइय कोशकार थे । इनकी रयनावलीमें देसी (देश्य) शब्दों का प्ररूपण है । इससे ही ज्ञात होता है कि छह विद्वानोंने इस दिशा में कार्य किया था जिनमें अभिमानसिंह भी एक थे इनकी वृत्तिपर उदात्ता चलने टीका लिखी थी, किन्तु वे सब ग्रन्थ अब तक अप्राप्य ही हैं । गोपालने पद्य देसीकोश बनाकर संस्कृत में शब्दार्थ दिया था । हेमचन्द्रके समान देसी शब्दोंका पाइय में ही अर्थ देने वाले देवराज और गोपाल में भेद है । 'तरंगावलिके' यशस्वी लेखक पादविप्पसूरिने भी देशी कोश लिखा था । शिताङ्ग तथा राहुलके विषय में भी ऐसी ही किम्वदन्ती है । छन्द शास्त्र - श्री पिङ्गलका 'पाइय- पिंगल' नौदियड़यका गाहालक्खन, अज्ञात नामक लेखक का कविदप्पण, स्वयम्भूचन्द्र विरहांकका काइसट्टह और रत्नशेखरका छन्दोकोस, आदि मुद्रित पाइयछन्द ग्रन्थ हैं । अलंकार - अनुश्रो गद्दार में प्राप्त नवरसोंके वर्णनपर से अनुमान किया जाता है कि पाइयअलंकार ग्रन्थ अवश्य रचे गये हों गे । यदि अनुमान निराधार सिद्ध हो तो भी सं० १९६१ से पहिले लिखा गया अलंकारदप्पण तो प्राप्य ग्रन्थ है ही । नाटक - कप्पूरमंजरी समान सट्टकों के अतिरिक्त भी प्रत्येक संकृत नाटक प्राकृतोंसे परिपूर्ण है । वस्तुतः इन्हें संस्कृत नाटक कहना सत्य नहीं है क्योंकि इन सबमें दो से अधिक भाषाओं का उपयोग हुआ है प्राकृतोंकी विविधता के लिए मृच्छकटिकका स्थान अनुपम है । कथा -- अपनी विविधता तथा विपुलता के कारण भारतीय कथा साहित्य विश्व में विख्यात है ! पाइय लेखकों की इस क्षेत्र में भी भारी देन है । उवासगदसा सुन्दर संक्षिप्त कहानियोंका भण्डार है । हरिभद्रकी समराइच्चका तथा धुत्ताक्खान सर्व विश्रुत हैं । जैन पुराण साहित्य अति विपुल है । 1 काव्य - प्रवरसेनका सेतुबन्ध तथा वाक्पतिराजका गौडवहो सुप्रसिद्ध पाइय महाकाव्य हैं । वाक्पतिराजका 'महामोहविजय, सर्वसेनका हरिविजय अब तक अप्राप्य हैं। गोविन्दाभिसोय के बारह सर्गों में प्रथम आठ के रचयिता बिल्वमंगल हैं और शेष सर्ग उनके शिष्य दुर्गाप्रसाद ने लिखे थे । ये दोनों केरलदेश वासी थे । श्रीकण्ठका यमक काव्य, रामपाणिवादके 'उसा निरूद्ध तथा कंसवहो' आदि अन्य काव्य ग्रन्थ हैं। स्तोत्र - मराठी पाइय में अनेक जैन स्तोत्र हैं; यथा नन्दिषेणका अजियसान्ति काया, जिनप्रभका पासनाह लहुथाया, भद्रबाहुका उवसग्गहरथोत्त तथा तिजयपहुत्तथोत्त, आदि सुप्रसिद्ध हैं । कवितावलि - प्राचीन युगमें कवितावलियोंका महत्त्वका स्थान रहा है । 'हालकी गाहा सतसई' ५३ ४१७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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