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पाइय साहित्यका सिंहावलोकन श्री प्रा० हीरालाल आर० कापडिया, एम० ए०
भारत अनेक भाषाओंकी जन्मभूमि है । सुविधाके लिए उन्हें १ पाइय (प्राकृत ) २ संस्कृत तथा ३ द्रविड़ इन तीन वर्गों में रख सकते हैं । ऋग्वेदके निर्माणके समय जो भाषा बोली जाती थी वह पाइय (प्राकृत) भाषाका प्राचीनतम रूप मेंथा । इस भाषाकी कोई कृति उपलब्ध नहीं है । जैनों की श्रद्धमागधी (अर्धमागधी ) तथा बौद्धोंकी पाली पाइयके द्वितीय युगके रूप हैं। आज भी इन दोनों भाषाओंका पुष्कल साहित्य उपलब्ध है । विषय निरवधि है अतः यहां पाली साहित्यकी चर्चा नहीं करें गे ।
जैन आगम ग्रन्थ अर्द्धमागधी साहित्यके प्राचीनतम ग्रन्थ माने जाते हैं । श्वेताम्बर मान्यतानु. सार इनमेंसे कुछकी रचना भगवान् महावीरके समय (५९९-५२७ ई० पू०) में हुई थी' । छन्द, नाट्य, संगीत शास्त्र तथा दो भाषात्मक नाटकोंमें मरहट्ठी ( महाराष्ट्री) सोरसेनी (शौरसेनी ) मागती (मागधी) अरहछ (अपभ्रंश अथवा अपभृष्ट) पेसाई (पैशाची ), आदि अनेक प्राकृत भाषात्रों तथा बोलियोंके नाम मिलते हैं।
व्याकरण-पालीका व्याकरणभी पाली भाषामें ही उपलब्धहै इसके अतिरिक्त अन्य प्राकृतोंकी यह स्थिति नहीं है । उनकी कुछ विशेषताओं तथा संस्कृत व्याकरणकी कुछ वातोंका दिग्दर्शन ही इनके व्याकरण हैं । उदाहरण के लिए आयारका (द्वि०, ४, १ रू. ३३५) तीन वचन-लिंग-काल-पुरुष चित्रण, ठाणका (अष्टम) आठ कारक निरूपण आदि। यह ज्योंका त्यों अणुअोगद्दार (सू० १२८) में पाया जाता है । इस आगमके पृ० १०५ ब पर (१) एकाक्षर तथा (२) अनेकाक्षर शब्दोंका उल्लेख मिलता है । पृ० १११-२ ब पर लिंग विवेचन है। सूत्र १२४, १२५, १३० में क्रमशः चार, पांच और दश प्रकारकी संज्ञानोंका उल्लेख है । सात समासों ( सू० १३०) का भी वर्णन है । “कप्प निजन्थी..." (प० १३०) पांच प्रकारके पदोंका उल्लेख करता है तथा अगले पद्यमें चार प्रदार्थों का निर्देश है। 'श्रावस्सय' "की विसेसावास्सय भास्य' मराठी टीकामें पाइय भाषाकी विशेषताओंका वर्णन है।"
१ जैन आगमसाहित्यका इतिहास। २ "भारतीय तथा इरानी अध्ययन' नामक ग्रन्थमें श्री कटारेका प्राकृत भाषाओंके नाम' शीर्षक निबन्ध । ३ "पाइय साहित्यके व्याकरण-वैशिष्टय" सार्वजनिक सं०४३ (अक्तूबर १९४१)