________________
वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
१ अणंतवयकहा २ सवण वारसिविहाणकहा ३ पक्खवइकहा ४ णहपंचमीकहा ५ चंदायणवय कहा ६चंदण छट्ठी कहा ७ णरयउतारीवुद्धारस कहा ८ गिद्दहसत्तमी कहा , मउउसत्तमी कहा १० पुप्फंजलिवय कहा ११ रयणत्तयविहाण कहा १२ दहलक्खणवय कहा १३ लद्धिवयविहाण कहा २४ सोलहकारणवयविहि १५ सुगंधदशमी कहा । इनमेंसे सं० १, १० और १२ की तीनों कथाएं ग्वालियर के जैसवाल वंशी चौधरी लक्ष्मणसिंहके पुत्र पंडित भीमसेनके अनुरोधसे रची गयी हैं और सं० २ तथा १३ की कथाएं ग्वालियरवासी संघपति साहु उद्धरणके जिनमंदिरमें निवास करते हुए साहु सारंगदेवके पुत्र देवदासकी प्रेरणाको पाकर बनायी गयी हैं । तथा सं० ७ की कथा गोपाचलवासी साहु बीधाके पुत्र सहजपालके अनुरोधसे लिखी गयी है । शेष नौ कथाओंके सम्बन्धमें कथा निर्माणके निमित्त श्रावकोंका कोई परिचय नहीं दिया है।
भट्टारक गुणभद्र का समय भी विक्रमकी १५ वीं शतीका अन्तिम चरण और १६ वीं शतीका प्रारंभिक है; क्योंकि संवत् १५०६ की लिखी हुई धनपाल पंचमी कथाकी लेखकपुष्पिकासे मालूम होता है कि उस समय ग्वालियरके पट्टपर भ० हेमकीर्ति विराजमान थे,' । और संवत् १५२१ में राजा कीर्तिसिंहके राज्यमें गुणभद्र मौजूद थे, जब ज्ञानार्णवकी प्रति लिखी गयी थी। इन्होंने अपनी कथाओंमें रचनाकाल नहीं दिया है। इसीसे निश्चित समय मालूम करने में बड़ी काठनाई हो जाती है।
इन विद्वान् भट्टारकोंके अतिरिक्त क्षेमकीर्ति, हेमकीर्ति, कुमारसेन, कमलकीर्ति और शुभचन्द्र आदिके नाम भी पाये जाते हैं। इनमेंसे क्षेमकीर्ति, हेमकीर्ति और कुमारसेन ये तीनों हिसारकी गद्दीके भ० जान पड़ते हैं ; क्यों कि कवि रइधूके पार्श्वपुराणकी सं० १५४९ को लेखक-पुष्पिकामें जो हिसारके चैत्यालयमें लिखी गयी है उक्त तीनों भट्टारकोंके अतिरिक्त भट्टारक नेमिचन्द्रका नाम भी दिया हुआ है जो कुमारसेनके पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे, उस समय वहां शाह सिकन्दरका राज्य था । कुछ ग्रन्थ प्रशस्तियोंके ऐतिहासिक उल्लेख
महाकवि रइधूकी समस्त रचनाओंमें यह विशेषता पायी जाती है कि उनकी आद्यन्त प्रशस्तियों में तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओंका समुल्लेख भी अंकित है, जो ऐतिहासिक दृष्टिसे बड़े ही महत्त्वका है और वह अनुसंधान-प्रिय विद्वानोंके लिए बहुत ही उपयोगी है । उन उल्लेखोंपरसे ग्वालियर, जोइणिपुर (दिल्ली) हिसार तथा आसपासके अन्य प्रदेशोंके निवासी जैनियोंकी प्रवृत्ति, आचार-विचार और धार्मिक मर्यादाका अच्छा चित्रण किया जासकता है, खास कर
१ धनपाल पंचमीकथाकी लेखक प्रशस्ति, कारंजा-प्रति । २ शानार्णवकी लेखक-पुष्पिका, जैन सिद्धान्त भवन, आराकी प्रति । ३ पार्श्वपुराणकी लेखक-पुपिका, जैन सिद्धान्त भवन आराकी प्रति ।
४१२