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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
समाप्त हो गया। आचार्य समन्तभद्रकी अनुश्रुति-सम्मत तिथि शक ६० अथवा सन् १३८ ई० है जिसका अर्थ है कि उनका मुनिजीवन सन् १३८ ई० के पश्चात प्रारंभ हुआ, उस समय फणिमंडलके दो भाग हो चुके थे और समस्त फणिमंडलकी राजधानी उरगपुर नहीं रह गयी थी। किन्तु जिस समय उनका जन्म हुआ फणिमंडल अखंड था और राजधानी उरगपुर थी–वे 'फणिमंडलालंकारस्योरगपुराधिपसूनोः' थे अर्थात् फणिमंडलकी राजधानी उरगपुरके अधिपतिके पुत्र थे । फणिमंडलका यह विभाजन १२५ ई०के लगभग हुआ प्रतीत होता है। स्वामी समन्तभद्र के विषयमें जो कुछ ज्ञात है उसपरसे यह निश्शंक कहा जा सकता है कि उन्होंने युवावस्थाके प्रारंभमें ही मुनिदीक्षा ले ली थी; अतः यदि दीक्षाके समय उनकी आयु १८-२० वर्षकी थी तो उनका जन्म १२० ई० के लगभग हुआ था । और संभवतया ( १३८ ई० में ) मणुवकहल्लीमें जिनदीक्षा ली थी। तथा १५४१५५ ई० के लगभग उन्हें भस्मक व्याधि हुई थी। बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन १८१ ई० तक जीवित था । उसके प्रसिद्ध ग्रन्थ विग्रहव्यावर्तनी, मुक्तिषष्ठिका, आदि १७० ई०के पूर्व ही बन चुके थे। सम्भवतया उसके मुक्तिषष्ठिकासे ही प्रेरणा पाकर स्वामी समन्तभद्रने १७० ई०के उपरान्त अपने युक्त्यनुशासनकी रचना की थी।
यदि स्वामी समन्तभद्रकी आयु ६५ वर्षकी हुई हो तो कहना होगा कि उनकी मृत्यु १८५ ई०के लगभग हुई । इस तरह उनका समय ई० १२०-१८५ निश्चित होता है, जिसकी वास्तविक कुंजी 'फणिमण्डल' और 'उरगपुर' शब्दोंमें भी निहित है।
SOURTELLIB.
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