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________________ स्वामी समन्तभद्रका समय और इतिहास शीर्षक निबन्धमें और विशेषतः उक्त लेख के 'रत्नकरंड में अपने समयकी एक ऐतिहासिक परम्पराका समुल्लेख' प्रकरण अन्तर्गत किया गया है। स्वामीने चैत्यवास प्रथाका कहीं संकेत भी नहीं किया है। मर्करा ताम्रपत्र ' (शक ३८८ = ४६६ईं०) आधारपर दिगम्बर आम्नायमें चैत्यावासका प्रारम्भ पांचवी शती वि०से हुआ है । इस कथन की पुष्टिपहाड़पुर र ताम्रपत्र ( ४७९ ई० ) से भी होती है, बल्कि पहाड़पुर ताम्रपत्रसे तो यही सूचित होता है कि उसमें कथित जैन विहार लगभग ४०० ई० से स्थापित था । अतः कमसे कम उसी समयसे चैत्यवासका प्रारंभ समझना चाहिये । इसके अतिरिक्त समन्तभद्र के स्वयंभूस्तोत्र (पद्य १२८ - आरिष्टनेमि ० ) में ऊर्जयन्त अथवा गिरनार पर्वतपर उस समय भी अनेक तपोधन मुनियोंके निवास करनेका आंखों देखा जैसा उल्लेख है, और उनके इस कथन की पुष्टि अभयरुद्रसिंह प्रथम ( १५० - १९७ ई० ) के गिरिनगर की चन्द्रगुफावाले प्रसिद्ध लेखसे अच्छी तरह हो जाती है तथा धवलादि ग्रंथों एवं श्रुतावतारोंके प्रथम शती के अन्त में गिरिनगर गुहा निवासी धरसेनाचार्य संबंधी कथानकसे भी उसका पूरा समर्थन होता है । ५. सन् १०७७ ई०के 'हुमच्च पंचवसति' शिलालेखमें जैनाचायोंकी परम्परा देते हुए समन्तभद्राचार्यके सम्बन्धमें कहा है कि 'उनके वंश (परम्परा) में सिंहनन्दि आचार्य हुए जिन्होंने गंगराजका निर्माण किया । इन सिंहनन्दि द्वारा गंगराज्यकी स्थापनाका समर्थन अनेक प्रमाणोंसे होता है, यथा- महाराज अविनीत (४३० - ४८२ ई०) का 'कोदनजरुबु' दानपत्र, भूविक्रम श्रीवल्लभका 'बेदिरूर' दानपत्र " (६३४३५ ई० ), शिवमार प्रथम पृथ्वीकोंगुणी ( ६७० - ७१३ ई० ) का खंडित ताम्रपत्र ६, श्री पुरुष मुत्तरस ( ७२६-७७६ ई० ) का अभिलेख, राजा हस्तिमल्लका उदयेन्दिरन' दानपत्र ( ९२० ई० ), महाराज मारसिंह गुत्तियगंगके कुडलूर ताम्रपत्र ( ६६३ ई० ) । उपर्युक्त प्रमाणोंके अतिरिक्त प्रस्तुत घटनाका सर्वाधिक पूर्ण एवं प्रशंसनीय वृत्तान्त मैसूर प्रान्तस्थ शिमोगा और हुबली के अन्तर्गत कल्लूरगुड्डा के सिद्धेश्वर मंदिरके निकट प्राप्त १९२२ ई० के शिलालेख से उपलब्ध होता है । सन् १९२६ ई० तथा सन् १९८६ ई० के दो अन्य शिलालेखोंसे तथा गोमट्टसारकी एक प्राचीन टीकाके उल्लेखसे भी इसकी पुष्टि होती है । इस प्रकार इस घटना और तत्सम्बन्धी कथानककी ऐतिहासिकताको इतिहासज्ञ विद्वानोंने निर्विवाद रूपसे स्वीकार कर लिया है। हां, गंग- राज्य स्थापना तथा उत्तरवर्ती गंग नरेशोंके समय संबंध में मतभेद है और उक्त वंशकी कालानुक्रमणिका सुनिश्चित रूपसे अभी तक व्यवस्थित नहीं हो १ सलेक्ट इन्सकृप्शन भा. १ सं. ४२ पृ० ३४६ । २ वही ४. सं० ७० पृ० १७७ । ३ एपी ग्राफिका कर्णा० भा. ७, सं० ४६, पृ० १३९ तथा सं० ३५, पृ० १३८ । ४ मै. आर्के. रि. १९२४ पृ० ६८ । ५ वही १९२५ पृ० ८५७ । ६ वही पृ० ९९ । ७ वही १६२१ पृ० २१, सा. इ. इन्स. भा. २, पृ० ३८७ । ८ वही पृ० १९ । ९ एपी. कर्णा. भा. ७ . ४; पृ १६, इत्यादि । ३८७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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