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स्वामी समन्तभद्रका समय और इतिहास
श्री ज्योतिप्रसाद जैन एम० ए०, एलएल० बी०
स्वामीकी महत्ता -
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भगवान महावीरके पश्चाद्वर्ती समस्त जैनाचार्यों में समन्तभद्रस्वामीका आसन अनेक दृष्टियों से सर्वोच्च है । उनके परवर्ती अनेक दिगम्बर श्वेताम्बर जैन - अजैन प्रख्यात एवं प्रमाणिक विद्वानोंने उनकी अद्वितीय प्रतिभा, गंभीर-सूक्ष्मप्रज्ञता, प्रभावक कवित्व शक्ति, अनुपम तार्किकता वाग्मिता उनके द्वारा किये गये अनेकान्तात्मक जिनेन्द्रके शासनके सर्वतोमुखी उत्कर्षकी मुक्तकंठसे प्रशंसा की है । वे साहित्य के मर्मज्ञ तथा उनके कार्य कलापोंसे सुपरिचित एवं प्रभावित दिग्गज, श्रेष्ठ आचार्यों द्वारा 'भद्रमूर्ति, एक मात्र भद्र प्रयोजनके धारक, कवीन्द्र भास्वान, वादियों वाग्मियों कवियों एवं गमको में सर्वश्रेष्ठ, महान एवं आद्य स्तुतिकार, स्याद्वाद मार्गाग्रणी, स्याद्वाद विद्याके गुरु तथा अधिपति, साक्षात स्याद्वाद शरीर, वादिमुख्य, कलिकाल गणधर भगवान महावीर के तीर्थकी सहस्रगुणी वृद्धि करनेवाले, जिनशासन प्रणेता, एवं साक्षात् भारतभूषण ऐसे विशेषणोंसे सम्बोधित किये गये हैं ।
प्रो० रामास्वामी आयंगरके शब्दों में, 'यह स्पष्ट है कि वह ( स्वामी समन्तभद्र ) जैन धर्म के एक महान प्रचारक थे । जिन्होंने जैन सिद्धान्तों और आचार विचारोंके दूर दूर तक प्रसार करने का सतत प्रयत्न किया, और जहां कहीं भी वह गये अन्य सम्प्रदायवाले उनका तनिक भी विरोध न कर सके ।' अपने इस कार्य में 'वे सदैव महाभाग्यशाली रहे । श्रवणबेलगोल शिलालेख १०५ के अनुसार 'उनके व्याख्यान सर्वार्थ प्रतिपादक स्याद्वाद विद्या के अनुपम प्रकाशसे त्रिभुवनको प्रकाशित करते हैं । और उनकी आप्तमीमांसा स्याद्वाद सिद्धान्तकी सर्वाधिक प्रमाणिक व्याख्या है । मि० एडवर्ड पी० राइसने लिखा है कि 'वह समस्त भारतवर्ष में जैनधर्म के अत्यन्त प्रतिभाशाली वादी और महान प्रचारक थे और उन्होंने स्याद्वाद रूप जैन सिद्धान्तको परम प्रभावक दृढ़ताके साथ ऊंचा उठाये रक्खा ।" बम्बई गजेटियरके
१. 'स्वामी समन्तभद्र'-- गुणादि परिचय प्रकरण |
२ सा. इण्डि. ज. पृ० २९-३१ ।
३ ई. पी. राइसकृत कनारी साहित्यका इतिहास ।
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