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________________ जैनसाहित्यमें राजनीति आगे चलकर मन्त्री कैसा होना चाहिये ? किस समय कैसा भोजन करना चाहिये ? और कैसे मनुष्योंकी संगति करनी चाहिये? आदि समस्त विषयोंका सुन्दर निरूपण है। महापुराणके व्यालीसवें पर्व में भगवजिनसेनाचार्यने महराज भरतकी राज्य व्यवस्थाका वर्णन करते हुए राजनीतिका विशद विवेचन किया है। गद्यचिन्तामणि कादम्बरीके जोड़का गद्य काव्य है। प्राचार्य आर्यनन्दीने विद्याध्ययनके अनन्तर जीवन्धरकुमारके लिए जो दीक्षान्त देशना दी है वह कादम्बरीके शुकनासोपदेशका स्मरण दिलाती है । कोमलकान्त पदावली और भव्य भावभङ्गीके द्वारा काव्य जगत्में युगान्तर करनेवाले महाकवि हरिचन्द्रने भी अपने धर्मशर्माभ्युदयमें यत्र तत्र और खासकर अठाहरवें सर्गमें राजनीतिका सरस और सुन्दर निरूपण किया है। अठारहवें सर्गके पन्द्रहवें श्लोकसे तेतालीसवें श्लोक तकका भाग विशेष रूपसे राजनीतिके विद्यार्थियोंको आकर्षित करता है। इस संक्षिप्त विवेचनसे 'जैन कवियोंने धर्म और मोक्षका ही वर्णन किया है' यह आक्षेप निमूल हो जाता है ।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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