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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ. जैनधर्मको मैं भारत भूमिपर त्याग और तपोमय जीवनके लिए किये हुए अनुभवों में उच्च स्थान देता हूं और इसी कारण उसके प्रति मेरी सहानुभूति है। जैन प्राकृत और संस्कृत एवं अपभ्रंश साहित्यमें भारतीय संस्कृतिके लिए अत्यधिक सामग्री भरी हुई है। जिन पूर्वज विद्वानोंने इस साहित्यके निर्माणमें अपने व्रतपूर्ण जीवनका सदुपयोग किया है उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित करना हमारा कर्तव्य है ! पूज्य वर्णीजी ऐसी ही विभूति हैं, उनका तथा जैन साहित्यसे भारतीय संस्कृतिकी व्याख्या के सब प्रयत्नोंका मैं अभिनन्दन करता हूं। नयी दिल्ली ] ___ (डा०) वासुदेवशरण अग्रवाल, एम० ए०, डी० लिट पूज्यवर वर्णोजी से मेरा सम्बन्ध ४० वर्ष से है। मेरे गांव बरुआसागर में ४० वर्ष पूर्व आपका दो वर्ष मुकाम रहा। तब मुझे भी आपके सम्पर्कमें आनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके उपदेशसे मेरी पढ़ने में रुचि हुई और मेरे ऊपर आये हुए सब प्रकारके विनोंको टाल कर मेरी शिक्षाकी आपने ही व्यवस्था की। जैन समाजके इस महोपकारी महात्माकी मनोवृत्ति जैनदर्शन, जैनतत्त्वज्ञान और जैनधर्मके प्रचार और उद्योतनमें ही निरन्तर रहती है। बुन्देलखण्ड प्रान्तका तो आपके द्वारा कल्पनातीत उपकार हुआ है । आपने सैकड़ों गरीबों को पूंजीपतियोंके चंगुलसे बचाया, ऋणमुक्त कराया । स्थान स्थान पर छोटी बड़ी पाठशालाएं और संस्कृत विद्यालय खोले। अापने परस्परके वैमनस्योंका सैकड़ों जगह कालामुंह किया, सैकड़ों गरीब भाई पञ्चायती प्रथाके दुरुपयोगसे छोटी छोटी अशास्त्रीय बातोंके ही ऊपर जातिच्युत कहे जाते थे उनका शुद्धिकरण कराया और वह सब तत्तत् पञ्चायतोंने पूर्ण मान्य किया । उनके सम्बन्ध में किसीमें भी कोई मतभेद पैदा नहीं हुआ। आपको अष्टसहस्री पढ़नेकी बड़ी उत्कण्ठा थी—कोई पढ़ाने वाला नहीं था, अपना कोई विद्यालय नहीं था। इसीलिए अापने प्रतिज्ञा ले ली थी कि जब तक मैं उस ग्रन्थको पूर्ण नहीं पढ़ लूंगा, सिले हुए कपड़े नहीं पहनूंगा। इसी प्रतिज्ञाने काशीमें स्याद्वाद महाविद्यालयकी नींव आपसे डलवायी और जैन न्यायके पठन पाठनका प्रमुखतासे प्रचार कराया। पूज्य वर्णीजीने सागरमें और बुन्देलखण्डमें अनेक स्थानों पर जैसे बीना, पपौरा, खुरई, बरुआ सागर, नैनागिर, द्रोणगिर बामौरा, साढूमल, आदिमें विद्यालय खुलवाये। इनमें बहुतसे तो छात्रावास युक्त हैं । आपने सामाजिक सुधारके लिए कई छोटी मोटी सभात्रोंकी स्थापना करायी। श्रापने संस्कृत शिक्षा प्रचारकी बड़ी लहर उत्पन्न की, जिसके परिणाम स्वरूप आज बुन्देलखण्डमें आपके कृपापात्र अनेक योग्य विद्वान पाये जाते हैं। आपकी वाणीमें करुणा रसकी प्रधानता है। आपकी दयावृत्तिका मुकाव असमर्थकी ओर अधिक चौबीस
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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