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________________ संस्कृत साहित्यके विकासमें जैनविद्वानोंका सहयोग सारवत् नीतिवाक्यामृतका सृजन किया है, अतः यह रचना अपने ढंगकी मौलिक और मूल्यवान् है । आयुर्वेद-- आयुर्वेदके सम्बन्धमें भी कुछ जैन रचनाएं उपलब्ध हैं। उग्रादित्यका कल्याणकारक, पूज्यपादका वैद्यसार अच्छी रचनाएं हैं। पंडितप्रवर श्राशाधर ( १३ वीं सदी ) ने वाग्भट या चरकसंहितापर एक अष्टाङ्ग हृदयोद्योतिनी नामक टोका लिखी थी, परन्तु सम्प्रति वह अप्राप्य है। चामुण्डरायकृत नरचिकित्सा, मल्लिषेणकृत बालग्रहचिकित्सा तथा सोमप्रभाचार्यका रस-प्रयोग भी उपयोगी रचनाएं हैं । कला और विज्ञान जैनाचार्योंने वैज्ञानिक साहित्यके ऊपर भी अपनी लेखनी चलायी। हंसदेव ( १३ वी सदी) का मृगपक्षीशास्त्र एक उत्कृष्ट कोटिको रचना मालूम देती है। इसमें १७१२ पद्य हैं और इसकी एक पाण्डुलिपि त्रिवेन्दम्की राजकीय पुस्तकागारमें सुरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त चामुण्डराय कृत कूपजलज्ञान, वनस्पतिस्वरूप, निधानादिपरीक्षाशास्त्र, धातुसार, धनुर्वेद, रत्नपरीक्षा, विज्ञानार्णव आदि ग्रन्थ भी उल्लेखनीय वैज्ञानिक रचनाएं हैं। ज्योतिष, सामुद्रिक तथा स्वमशास्त्र ज्योतिषशास्त्रके सम्बन्धमें जैनाचार्योंकी महत्वपूर्ण रचनाएं उपलब्ध हैं, गणित और फलित दोनों भागोंके ऊपर ज्योतिर्ग्रन्थ पाये जाते हैं । जैनाचार्योंने गणित ज्योतिष् सम्बन्धी विषयका प्रतिपादन करनेके लिए पाटीगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, गोलीय रेखागणित, चापीय एवं वक्रीय त्रिकोणमिति, प्रतिभागणित, शृङ्गोन्नतिगणित, पञ्चाङ्ग निर्माणगणित, जन्मपत्र निर्माणगणित, ग्रहयुतिउदयास्त सम्बन्धी गणित एवं यन्त्रादिसाधन सम्बन्धित गणितका प्रतिपादन किया है। जैनगणितके विकासका स्वर्णयुग छठवींसे बारहवीं शती तक है। इस बीच अनेक महत्वपूर्ण गणित ग्रन्थोंका ग्रथन हुआ है । इसके पहलेकी कोई स्वतन्त्र रचना उपलब्ध नहीं है। कतिपय आगमिक ग्रन्थोंमें अवश्य गणित सम्बन्धी कुछ बीजसूत्र पाये जाते हैं। सूर्यप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति प्राकृतकी रचनाएं होने पर भी जैनगणितकी अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा प्राचीन रचनाएं हैं। इनमें सूर्य और चन्द्रसे तथा इनके ग्रह, तारा, मण्डल, आदिसे सम्बन्धित गणित तथा अनेक विद्वानोंका उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। इनके अतिरिक्त महावीराचार्य ( ९ वीं सदी) का गणितसारसंग्रह; श्रीधरदेवका गणितशास्त्र, हेमप्रभसू रिका त्रैलोक्यप्रकाश और सिंहतिलकसूरिका गणिततिलक, आदि ग्रन्थ भों सारगर्भित और उपयोगी है । फलित ज्योतिषसे सम्वन्धित होराशास्त्र, संहिताशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र, प्रश्नशास्त्र ३१७
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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