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________________ साईद्विसहस्राब्दिक-वीर-शासन प्रायश्चित लिया था । दि. जैन गुरु विशालकीर्ति भी दिल्ली आये थे और यवन दरबारमें जैन ध्वजको ऊंचा किया था ।२ मार्कोपोलो, ट्रावरनियर, बरनियर, आदि विदेशी यात्रियोंने भारतमें दिगम्बर साधुओंको धर्म प्रचार करते हुए पाया था । उत्त कालीन मुसलिम राज्यकालमें मुगल-सम्राटोंका शासनकाल विशेष प्रख्यात् रहा है। मुगल शासकोंको भी जैनाचार्योंने प्रभावित किया था, जिसके कारण जैनोंको अपने धर्मको पालनेकी पूर्ण सुविधा मिली थी। सम्राट अकबरके दरबारी और राजकर्मचारी होनेका गौरव सरदार कर्मसिंह, साहुटोडर. राजा भारामल्ल आदि जैन महानुभावोंको प्राप्त था ! हरिविजयसूरि, विजयसेन, जिनचन्द्र, भानुचन्द्र प्रभृति श्वेताम्बर जैनाचार्योंने अकबर और जहांगीरको जैनधर्मकी शिक्षा दी थी । ईसाई पादरी पिनहेरो ( Pinheiro ) ने तो यहां तक लिखा कि अकबर जैनियोंके नियमोंको पालते थे६-मानो वह जैनी हो गये थे । अहिंसाधर्मको प्रकाश में आनेका अवसर एक बार फिर अकबरके शासनमें प्राप्त हुआ था। अपने धर्मका प्रचार करने की प्रत्येक धर्मावलम्बीको स्वाधीनता पुनः प्राप्त हुई थी। वे मुसलमानोंकी शुद्धि भी कर सके थे । राजनियमानुसार हिन्दू भी एक मुसलमान कन्यासे व्याह कर सकता था, बशर्ते कि वह हिन्दू होनेके लिए तैयार हो। बलात् धर्मपरिवर्तन निषिद्ध था। जहांगीरके शासनकालमें रजौरी नामक स्थानके हिन्दुओंने अनेक मुसलमान कन्याओंको हिन्दू बनाकर व्याहा था। सम्राटको यह सामूहिक धर्म परिवर्तन असह्य हुआ और उन्होंने इसपर कानूनी बन्दिश लगा दी । जैनियोंमें भी सामाजिक संकीर्णता आगयी थी इसलिए वह भी इस दिशामें आगे नहीं बढ़ सके । किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि अकबरके शासनकालमें जैनियोंकी संख्या कई करोड थी१० । कविवर बनारसीदासजी शाहजहांके कृपापात्र थे । सम्राट औरंगजेबने दिगम्बर जैनाचार्यका सम्मान किया था। भट्टारक प्रथाका जन्म फीरोजशाहके समयमें दिगम्बर जैन श्राचार्यने धर्म प्रभावनाके लिए वस्त्रधारण किया था, उसका १. भट्टारकमीमांसा ( सूरत ) पृ० २ । २. कर्णाटक हिस्टा० रिव्यू , भा० ४ पृष ७८-८२ । ३. दिगम्बरत्व और दिगम्बरमुनि, पृष्ट २४६-२६० । ४. जैन सिद्धांतभास्कर, भा० ५ पृष्ट १४१-१४१ । ५. 'सूरीश्वर और सम्राट' नामक पुस्तक । ६. He follows The sect fo vrai (Jain). Pinheiro. ७. पुरातत्त्व (अहमदावाद ) पुस्तक ५ अंक ४ पृष्ट २४-२३ । ८. इण्डियन कलचर भाग ४ अंक ३ पृष्ट ३०४ । ९. इंडियन कलचर, मा० ४ अंक ३ पृष्ट ३०६-३०८ । १०. आईन-इ,अकबरी (लखनऊ) भा३ पृष्ट ८७-८८३ ।
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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