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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ ति है। पूर्ण स्वस्थ, सुन्दर और बलिष्ट होता है। फिर क्या है समुद्र पार करना, पहाड़ पर चढ़ना, आदि साहसिक कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं । साहसका उदय सामाजिक स्थितिको जटिल बनाता है, व्यवस्था एवं शान्तिके नियम अनिवार्य होते हैं । विवाह-प्रथा प्रारम्भ होती है । पशुपालन अथवा भ्रमणका स्थान कृषि एवं वाणिज्य ले लेते है फलतः घर भोजन-भाजन पूर्ण हो जाते हैं । जैन शास्त्रोंके अनुसार श्राधुनिक प्राग-इतिहास युगके बहुत पहिले उक्त प्रकारसे मानव समाजका विकास हुअा था। उस समय शासन अथवा वर्ग-तंत्र भी न था । यद्यपि उक्त समस्त वर्णन को सरलतासे वस्तुस्थिति नहीं कहा जा सकता तथापि इतना निश्चित है कि सूर्य चन्द्रादि दर्शनसे युगारम्भ हुअा तथा भारतीय, बेबलोनियन, मिश्री, ग्रीक, चाइनी, आदि विद्वानोंने इस विज्ञानको श्रागे बढ़ाया। फलतः जैन पुराण 'ज्योतिष प्राचीनतम विज्ञान है' कथनकी पुष्टि करता है । 'यह संसार पानी और श्रागसे अवश्य नष्ट होगा यह जानकार ही प्राक्-प्रलयकालिक यहूदी 'अदम' अादि ऋषियोंने ईट तथा संगमरमरके स्तम्भ बनवाये थे। तथा उनपर ज्योतिषके मूल तत्त्व उत्कीर्ण किये थे' कथा भी उक्त मान्यताकी पोषक है। मानवका विकास ?-- यदि भोगभूमिसे कर्मभूमिका सिद्धान्त सत्य है तो कहना होगा कि मनुष्य प्रारम्भमें जंगली जन्तुओंके साथ रहता था। यह तथ्य मानव और पशुके बोचमें दृष्ट वर्तमान महान अन्तरके कारण भी उपेक्षित नहीं हो सकता । अर्वाचीन पर्यवेक्षकोंकाभी मत है कि आज भी सांस्कृतिक प्रथम श्रेणीमें पड़े लोगों और पशुओंमें अत्यधिक समता होती है। उनमें वैसा अन्तर नहीं होता जैसा पूज्य गांधीजी और व्याघ्रमें होता है। यह अन्तर महान विकासका फल है । डाक्टर पिकार्डका "अनन्त संसारका रचयिता जगन्नियन्ता भी उन्हीं द्रव्योंसे बना है जिनसे वह पशु बना है जिसे पालतू बनाकर वह अपने काम लाता है अथवा मारकर भाग जाता है ।" कथन भी उक्त समताका समर्थक है। श्री सी० वाईटका "आत्मबोधकी जाग्रति" शीर्षक निबन्ध स्पष्ट बताता है कि मानवकी उच्चतम बौद्धिक वृत्तियोंका प्रारम्भ उस साधारण बुद्धिसे हुआ है जो निम्नतम पशु तथा साधारण व्यक्तिमें समान रूपसे पायी जाती है। मनुष्यने दर्शन तथा अभ्यास द्वारा अपना ज्ञान बढाया और संभवतः इसी कारण पशुसे वह विलक्षण हो गया । पहिलेके साथी अब एक साथ न रह सकते थे । ज्ञान वृद्धि के साथ, साथ मनुष्यकी वृत्ति कोमल हो गयी थी फलतः वह हिंस्र पशुसे दूर रहने लगा, आत्मरक्षाके लिए अस्त्र बनाये, पशुओंको पराजित किया और पालतू बना लिया। यह वर्णन अक्षरशः सत्य न भी हो किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि सुदर प्राग-ऐतिहासिक कालमें मानव समाजके विकासका क्रम ऐसा ही रहा हो गा। १-इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका भा० २ पृ०७४४ (९ म संस्करण)। . २७४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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