________________
प्राचीन सिंधप्रान्तमें जैनधर्म
सरसा
श्री पुण्योदय भटनेर १७९८
श्री राजमूर्ति निष्कर्ष--
इसी प्रकार बन्दना, स्तवन, स्वर्गवास, श्रादिके स्थानोंके उल्लेखोंकी अत्यधिक प्रचुरता है। किन्तु भारतीय धर्मों के लिए समय कैसा घातक होता जा रहा है कि मुलतान, श्रादि कतिपय स्थानोंके सिवा सिन्ध ( वर्तमान पंजाब, सीमाप्रान्त तथा सिन्ध ) में जैनियोंके दर्शन भी दुर्लभ हो गये हैं। और टोरी पार्टीके द्वारा प्रारब्ध भारत-कर्तनने तो इन प्रान्तोंसे समस्त भारतीय धौंको ही अर्द्धचन्द्र दे दिया है।
२६५