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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ भी छह मास अध्ययन किया । इस प्रकार यद्यपि वर्णीजीने तब तक न्यायाचार्य के तीन ही खण्ड पास किये थे तथापि उनका लौकिक ज्ञान खण्डातीत हो चुका था। तथा उन्होंने अपने भावी जीवन क्षेत्र-जैन समाजमें शिक्षा प्रचार तथा मूक सुधारके लिए अपने आपको भली भांति तयार कर लिया था। . 'जानो और जानने दो-' माशा कलकत्तेसे लौटकर जब बनारस होते हुए सागर आये तो वर्णी ने देखा कि उनका जन्म जनपद शिक्षाकी दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है । जब नैनागिर तरफ विहार किया तो उनका आत्मा तड़प उठा । बंगाल और बुन्देलखण्ड की बौद्धिक विषमताने उनके अन्तस्तलको आलोडित और आन्दोलित कर दिया । रथयात्रा, जलयात्रा, आदिमें हजारों रुपया व्यय करने वालोंको शिक्षा और शास्त्र-दानका विचार भी नहीं करने देखकर वे अवाक रह गये। उन्होंने देखा कि भोजन-पान तथा लैङ्गिक सदाचार को दृढ़तासे निभाकर भी समाज भाव-आचारसे दूर चला जा रहा है। साधारण सी भूलोंके लिए लोग बहिष्कृत होते हैं और आपसी कलह होती है। प्रारम्भमें किसी विधवाको रख लेने के कारण ही 'विनैकावार होते थे पर हलवानीमें सुन्दर पत्नीके कारण वहिष्कृत, दिगौडेमें दो घोड़ोंकी लाड़ाई में दुर्बल घोड़ेके' मरने पर सबल घोड़े वालेका दण्ड, आदि घटनाओंने वर्णीजीको अत्यन्त सचिन्त कर दिया था। हरदीके रघुनाथ मोदी बाली घटना भी इन्हीं सब बातोंकी पोषक थी। उनके मन में पाया कि ज्ञान विना इस जड़तासे मुक्ति नहीं। फलतः आपने सबसे पहिले बंडा (सागर, म० प्रा०) में पाठशाला खुलवायी। इसके बाद जब आप ललितपुरमें इस चिन्तामें मग्न थे कि किस प्रकार उस प्रान्त के केन्द्र स्थानों में संस्थाएं स्थापित की जाय उसी समय श्री सबालनवीसने सागरसे आपको बुलाया । संयोगकी बात है कि आपके साथ पं० सहदेव झा भी थे । फलतः श्री कण्डयाके प्रथम दानके मिलते ही अक्षय-तृतीयाको प्रथम छात्र पं० मन्नालाल रांधेलीयकी शिक्षासे सागरमें श्री सत्तर्क सुधा तरंगिणी पाठशाला' का प्रारम्भ हो गया । गंगाकी विशाल धाराके समान इस संस्थाका प्रारम्भ भी बहुत छोटा था। स्थान प्रादिके लिए मोराजी भवन आनेके पहिले इस संस्थाने जो कठिनाइयां उठायों वास्तव में वे वर्णीजी ऐसे बद्धपरिकर व्यक्तिके अभावमें इस संस्थाको समाप्त कर देनेके लिए पर्याप्त थीं। आर्थिक व्यवस्था भी स्थानीय श्रीमानों की दुकानोंसे मिलने वाले एक आना सैकड़ा धर्मादाके ऊपर अश्रित थी। पर इस संस्थाके वर्तमान विशाल प्राङ्गण, भवन, श्रादिको देखकर अनायास ही वर्णीजीके सामने दर्शकका शिर झुक जाता है। आज जैन समाजमें बुन्देल खण्डीय पंडितोंका प्रबल बहुमत है उसके कारणोंका विचार करने पर सागरका यह विद्यालय तथा वर्णी जी की प्रेरणासे स्थापित साह्मल, पपौरा, मालथौन, ललितपुर, कटनी, मड़ावरा, खुरई, बीना, बरुआसागर, श्रादि स्थानोंके विद्यालय स्वयं सामने आ जाते हैं । वस्तुस्थिति यह है कि इन पाठशालाओं चौदह
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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