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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ वर्धमान प्रतिमाका लेख-- यह लेख सं० ३२०८ मूर्तिकी चौकी पर दो पंक्तियों में खुदा हुआ है और इस प्रकार है(पं० १) “सं ८२ हे मासे १ दिवसे १० एत......." (पं० २ ) "[ भगि ] निये जयदेवीये भगवतो वर्धमा [ न ]....." दोनों पंक्तियोंके अन्तिम अंश पत्थरके टूट जानेसे नष्ट हो गये हैं । लेख कुषाण-कालीन ब्राह्मी लिपिमें हैं तथा इसकी भाषा पाली है, जो मथुरासे प्राप्त अधिकांश जैन अभिलेखों में मिलती है। लेखका तात्पर्य है कि सं० ८२ की हेमंत ऋतुके प्रथम मासके दसवें दिन किसी श्रावककी भगिनी जयदेवीने भगवान् वर्धमानकी प्रतिमा स्थापित की । सं० ८२ निश्चय ही शक संवत् है । इसके अनुसार मूर्ति स्थापना का काल १६० ई० श्राता है, जब कि मथुरामें कुषाणवंशी वासुदेवका शासन था। निष्कर्ष ___ उपयुक्त दोनों लेख संवत्-सहित होनेके कारण महत्त्वके हैं । पहले लेखका संवत् १०७१ है । कंकाली टीलेसे १८८९ ई० की खुदाईमें डा० फ्यूहररको दो विशालकाय तीर्थंकर प्रतिमाएं मिलों थीं। दोनों श्वेताम्बर सम्प्रदायके द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी थीं, जैसा कि उनके लेखोंसे पता चलता है । इनमें से एक पर विक्रम संवत् १०३८ ( = ९८१ ई०) तथा दूसरी पर सं० ११३४ (= १०७७ ई०) खुदा है । पार्श्वनाथकी मूर्ति, जिसका वर्णन ऊपर किया गया है इन दोनों मूर्तियों के निर्माण कालोंके बीच में बनी थी । इतिहाससे पता चलता है कि महमूद गजनीने १०१८ ई० में मथुराका प्रथम विध्वंस किया । ऊपरकी तीनों मूर्तियोंमें से दो का निर्माण इस विध्वंसकारी कालके पहले ही हो चुका था और तीसरी (सं० ११३४ वाली ) का बादमें । परंतु पहली दोनों अच्छी दशामें प्राप्त हुई हैं और कहींसे नहीं टूटी हैं, जब कि सं० ११३४ वाली मूर्तिके दोनों बाहु बुरी तरहसे तोड़ डाले गये हैं। हो सकता है कि पहले वाली दोनों मूर्तियां किसी तरह सुरक्षित कर ली गयी हों अोर इसी लिए वे अभग्नावस्थामें प्राप्त हो सकी हैं। स्त्रियोंका धर्म प्रेम ऊपर जिन दोनों लेखोंका उल्लेख किया गया है उनके संबंधमें दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनोंमें महिलाओंके द्वारा दानका कथन है। पहली मूर्ति (नं० २८५४ ) एक वणिककी भार्या सोमाके द्वारा निर्मित करायी गयी तथा दूसरी (नं० ३२०८ ) जयदेवीके द्वारा । यह बात ध्यान देनेकी है कि मथुरासे प्राप्त सैकड़ों जैन अभिलेखोंसे पता चलता है कि धर्मके प्रति स्त्रियोंकी आस्था पुरुषोंसे कहीं अधिक थी और धर्मार्थ दान देनेमें वे सदा पुरुषोंसे अग्रणी रहती थीं । उदाहरणार्थ, 'माथुराक लवदास'की भार्या तथा फल्गुयश नर्तककी स्त्री शिवयशाने एक एक सुंदर अायागपट्ट बनवाया, जो २३०
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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