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________________ मथुरा से प्राप्त दो नवीन जैन अभिलेख श्री क्यूरेटर कृष्णदत्त वाजपेयी, एम० ए० ईसापूर्व सातवीं शती से लेकर लगभग बारहवीं शती तक मथुरा नगरी जैनधर्म और कलाका प्रधान केन्द्र थी । कंकाली टीले तथा अन्य स्थानोंसे प्राप्त सैकड़ों तीर्थंकर - मूर्तियां मांगलिक चिह्नोंसे (अष्टमंगल द्रव्य) युक्त श्रायागपट्ट, देवोंकिन्नरों आदि से वंदित स्तूप, अशोक, चंपक नागकेशर वृक्षोंके नीचे आकर्षक मुद्रा में खड़ी हुई शालभंजिकात्रों से सुशोभित वेदिका-स्तंभ तथा अनेक प्रकारके कलापूर्ण शिलापट्ट शिरदल, आदि यह उद्घोषित करते हैं कि मथुराके शिल्पी अपने कार्य में कितने पटु थे ! साथ ही जैनधर्म के प्रति तत्कालीन जनताकी अभिरुचिका भी पता चलता है । मथुराके पुरातत्त्व संग्रहालय में मैंने धर्म और कला के अध्ययनकी अपार सामग्री देखी है । आशा है कि कंकाली टीले से खुदायीमें प्राप्तवह सामग्री जो १८८८- ९१ में ई० में लखनऊ संग्राहलय में भेज दी गयी थी फिर मथुरा वापस श्रा जाय गी, जिससे एक स्थान पर ही सारी सामग्रीका अध्ययन करनेमें सुगमता हो सके गी । - अनेक प्राचीन स्थानों से अब भी प्रति वर्ष सैकड़ों मूर्तियां, आदि शिलालेख भी मिले हैं, जिनमें से दो का संक्षिप्त उल्लेख यहां मथुरा शहर तथा जिले के प्राप्त होती रहती हैं । हालमें कई जैन किया जाता है पार्श्वनाथ- प्रतिमाकी चौकीपर का लेख यह लेख सं ० २८७४ ध्यान मुद्रामें बैठे हुए भगवान् पार्श्वनाथकी विशाल प्रतिमा ( ऊंचाई ३ फी० १० इं० ) की चौकी पर खुदा हुआ है, जो इस प्रकार है “संवत् १०७१ श्रीमूलसंघः श्रावक वणिक् जसराक भार्या सोमा... लेखका अभिप्राय यह है कि संवत् १०७१ में श्रीमूल संघके श्रावक जसराक नामक वणिक की भार्या सोमाने भगवान् पार्श्वनाथकी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की। यह संवत् विक्रम संवत है। मथुरा से प्राप्त अन्य समकालीन मूर्तियों पर भी इसी संवत्का व्यवहार हुआ है । अतः प्रस्तुत मूर्तिका १०१४ ई० आता है । निर्माण काल २२९ 33
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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