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________________ मथुराके प्राचीन टीले छत्रधारिणीकी मूर्ति उत्कीर्ण है। इसके सिरेका दृश्य किसी जातकका है। इस पर १०० की संख्या प्राचीन लिपिमें उत्कीर्ण है । संभवतः इस वेदिकामें इस प्रकारके १०० स्तूप बने हुए थे । भूतेश्वरके दक्षिण क्षेत्रसे भी अनेक भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं । यहां एक चौपालमें जड़े पांच सुन्दर स्तंभ मिले जिनमें से प्रत्येक पर सामने वामन-पुरुषको अपना आधार बनाये खड़ी नारी मूर्ति उत्कीर्ण है । इनके पीछे जातक कथाएं उत्कीर्ण हैं । . सन् १८७१ में कनिंघमने चौबारा नामका टीला खोदा । चौबारा कटरासे मोल भर दक्षिणपश्चिम प्रायः एक दर्जन टोलोंका समूह है । सन् १८६८ में ही सड़क निकालते समय इनमें से एक में एक सुवर्णकी वस्तु मिली । दूसरेसे एक पेटिका मिली जो अब कलकत्तेके संग्रहालयमें है। इनमें से एकसे एक अद्भुत पारसीक स्तंभ-शीर्ष भी उपलब्ध हुया था। इनमें मानव मुखवाले चार पशु उल्टे बने हैं। यह स्तंभ-शीर्ष भी कलकत्तेके संग्रहालयमें ही है। चौबाराके ही एक टीलेसे ग्राउजको एक विशाल बुद्ध मस्तक मिला, जिसके ललाटके बीच 'ऊर्णा' का छिद्र बना हुआ है। यहांसे भी अनेक वेदिका-स्तंभ, भग्न प्रतिमाएं, ग्रादि मिली। ऊपर बताये स्थानोंके अतिरिक्त ग्राउज साहबने अनेक अन्य टीलों का हवाला दिया है जिनसे प्रभूत कला-रत्न प्रसूत हुए हैं । पालीखेड़ा गांवके बाहर वह प्रसिद्ध शिलापट्ट मिला जिसे 'बैकेनेलियन ग्रूप' कहते हैं और जिस पर उभरा हुआ दृश्य 'पातातिशय' का है । इस दृश्य पर ग्रीक शैलीकी स्पष्ट छाप है । इसी टीले में तीन स्तंभोंके घंटाकार आधार एक दूसरे से तेरह फीटकी दूरी पर मिले थे जिससे जान पड़ता है कि इस स्थल पर कभी कोई मन्दिर खड़ा था । नाग की प्रसिद्ध मूर्ति सैदाबाद तहसील के कूकरगांवमें मिली थी। ___जमुनाके तटपर सीतलाघाटीके ऊपर पुराने किले में कनिंधम को 'एक टूटी, नग्न, जैन मूर्ति मिली थी जिसके 'हिन्दू-शक' अभिलेखमें अंक और शब्दोंमें ५७ का वर्ष तिथि रूपमें उत्कीर्ण है।' अर्जुनपुरके उत्तर रानीकीमंडीमें जिनमूर्तिका एक अभिलिखित आधार मिला है जिसमें ६२ वें वर्ष, ग्रीष्मके तृतीय मास और पांचवें दिनका उल्लेख है । कंकाली टीला-- सन् १८८८-९, में डा० फुहरर ने कंकालीटीलेको और सन् १८६६ में कटरा-टीलेको खोदा था । कंकालो टीलेमें दो जैन मन्दिरोंके भग्नावशेष मिले और एक ईटोंका बना स्तूप मिला जिसका व्यास ४७ फीट था । इन खुदाइयों में प्रभूत मूर्ति राशि मिली। केवल सन् १८९०-९१ की खुदाइयों में ७३७ मूर्तियां उपलब्ध हुई । इनमें अनेक द्वारोंके बाजू , देहली, स्तंभादि भी थे १८८९-९१ की खुदाइयों में विशेष अभिप्राप्ति जैन मूर्तियों और अभिलेखों की हुई । कंकालीटीला जैन भग्नावशषोंकी समाधि सिद्ध हुआ। २९ २२५
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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