SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ जमालपुर टीला १८६० ई० में अगर रोड पर जमालपुरके पास जमालपुर-टीलेमें हाथ लगाया गया । कनिंघमने इसे 'जेलवाला टीला' कहा है। हम इसे 'जमालपुर टीला' ही कहेंगे । इस टीलेसे अनेक मूर्तियां स्तंभ, वेदिका-भग्नावशेष, छोटे प्रत्तर-तूप, छत्र, आदि उपलब्ध हुए। कनिंघमने यहांसे मिली दो विशाल बुद्धकी खड़ी मूर्तियां, दो बैठी आदमकद बौद्ध प्रतिमाओं और एक फुट भर चौड़ी हथेलोका जिक्र किया है । सर अलेग्जैडरकी रायमें यहांसे प्राप्त मूर्तियों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'वेनास' की थी जो अब लखनऊ संग्रहालयमें प्रदर्शित है। उसी स्थानसे अनेक सिंह प्रतिमाएं और बोसियों भग्न स्तंभ तथा वेदिका-स्तम्भ प्राप्त हुए । इनके अतिरिक्त प्रायः वीस स्तंभ-अाधार मिले जिनमेंसे पन्द्रहपर अभिलेख खुदे थे । ये अधिकतर कुषाण राजा कनिष्क और हुविष्कके शासनकालके थे। इसी स्थानमें बुद्धकी वह अद्भुत अभयमुद्रामें खड़ी प्रतिमा मिली जिसे देखनेके लिए दूर दूरसे यात्री आते हैं । पांचवीं शती ईस्वी की यह मूर्ति यशदिन्न' का अक्षय दान है । कंकाली टीला-- कचहरीकी जमीनसे भी प्रायः तीस स्तंभ-आधार, उपलब्ध हुए है । जिनमें से पन्द्रहपर अभिलेख खुदे थे । श्रीमित्र और डाउसनने इन अभिलेखोंका सम्पादन किया था । १८८१-८२ ई० में कनिंघमने मथुरा संग्रहालयमें तीस हिन्दू-शक स्तंभ देखे । १८७१ में कनिंघमने 'कंकाली' और 'चौबारा' टीलोंमें हाथ लगाया। कंकालीटीला मथुराके सारे अन्य टीलोंसे अधिक उर्वर प्रमाणित हुश्रा। यह कटरासे प्रायः श्राध मील दूर दक्षिणकी अोर है। उससे प्रसूत मूर्ति राशि का पता उस समयसे कुछ साल पूर्व ही लग गया था जब उसे कुछ आदमियोंने ईंट निकालनेके लिए खोदा था। फिर हल्की खुदाईके जरिए हार्डिञ्ज साहबने दो विशाल बुद्ध मूर्तियां प्रान की थीं। इसी कंकालो टीलेके पश्चिमी भागको खोदते हुए कनिधम साहबको तीर्थकरोंकी अभिलिखित भग्न मूर्तियां, वेदिका-स्तंभ और वेष्ठनी आदिके भग्न अवशेष मिले । टीले में खड़ी इंटकी दीवारोंसे सिद्ध है कि यहां हिन्दू-शककालमें जैन विहार खड़े हों गे | यहांसे उपलब्ध जिन बारह अभिलेखोंका कनिंघमने हवाला दिया है वे कनिष्कके शासनकालके पांचवें वर्षसे लेकर वासुदेवके राज्य-कालमें ९८ वें वर्ष तकके हैं । कंकाली टीले का यह जैन भवन उस प्राचीन काल से मुस्लिम कालतक निरन्तर जैन उपासकोंकी धार्मिक अभितृप्ति करता रहा था । जैसा कि यहांसे मिली विक्रमीय बारहवी शतीकी अनेक अभिलिखित जैनमूर्तियोंसे प्रमाणित है। कंकालो टीले और कटरे के बीच भूतेश्वरका शिव मंदिर है। उसके पीछेके टीलेपर एक ऊंचा वेदिका-स्तंभ खड़ा था। उसे ग्राउज़ साहबने मथुरा संग्रहालयको प्रदान किया। इसपर आदमकद २२४
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy