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________________ वर्णी- अभिनन्दन ग्रन्थ और दक्षिण करनाटकके जिलोंमें २३००० । इनमें से अधिकतर इधर उधर फैले हुए हैं और गरीब किसान और अशिक्षित हैं । उन्हें अपने पूर्वजों के अनुपम इतिहासका तनिक भी बोध नहीं है । उनके उत्तर भारतवाले भाई जो आदिम जैनधर्मके अवशिष्ट चिन्ह हैं, उनसे अपेक्षाकृत अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं । उनमें से अधिकांश धनवान् व्यापारी और महाजन हैं । दक्षिण भारत में जैनियोंकी विनष्ट प्रतिमाएं, परित्यक्त गुफाएं और भग्नमन्दिर इस बात के स्मारक हैं कि प्राचीनकाल में जैन समाजका वहां कितना विशाल विस्तार था और किस प्रकार ब्राह्मणोंकी धार्मिक स्पर्धाने उनको मृतप्राय कर दिया । जैन समाज विस्तृति के अंचल में लुप्त हो गया, उसके सिद्धान्तों पर गहरी चोट लगी, परन्तु दक्षिण जैनधर्म और वैदिक धर्मके मध्य जो कराल संग्राम और रक्तपात हुआ वह मदुरा में मीनाक्षी मन्दिर के स्वर्णकुमुद सरोवरके मण्डपकी दीवारों पर अंकित है तथा चित्रोंके देखने से अब भी स्मरण हो आता है । इन चित्रोंमें जैनियोंके विकराल - शत्रु तिरुज्ञान संभाण्ड के द्वारा जैनियोंके प्रति अत्याचारों और रोमाञ्चकारी यातनाओं का चित्रण । इस रौद्र काण्डका यहीं अन्त नहीं है । मड्यूरा मन्दिरके बारह वार्षिक त्योहारोंमें से पांच में यह हृदय विदारक दृश्य प्रति वर्ष दिखलाया जाता है । यह सोचकर शोक होता है कि एकान्त और जनशून्य स्थानोंमें कतिपय जैन - महात्माओं और जैनधर्मकी वेदियों पर बलिदान हुए महापुरुषों की मूर्तियों और जनश्रुतियोंके अतिरिक्त, दक्षिण भारत में अब जैनमतावलम्बियों के उच्चउद्देशों, सर्वाङ्ग व्यापी उत्साह और राजनैतिक प्रभाव के प्रमाण स्वरूप कोई अन्य चिन्ह विद्यमान नहीं है । २२२
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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