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________________ तामिल-प्रदेशोंमें जैनधर्मावलम्बी दक्षिण भारतमें जैनधर्मको उन्नति और अवनतिके इस साधारण वर्णनका यह उदंश सुदूर दक्षिण-भारतमें प्रसिद्ध जैनधर्मके इतिहासका वर्णन नहीं है । ऐसे इतिहास लिखनेके लिए यथेष्ठ सामग्रीका अभाव है । उत्तरकी भांति दक्षिण भारतके भी साहित्यमें राजनैतिक इतिहासका बहुत कम उल्लेख है। हमें जो कुछ ज्ञान उस समयके जैन इतिहासका है वह अधिकतर पुरातत्त्व-वेत्ताओं और यात्रियोंके लेखोंसे प्राप्त हुश्रा है, जो प्रायः यूरोपियन हैं। इसके अतिरिक्त वैदिक ग्रन्थोंसे भी जैन इतिहासका कुछ पता लगता है, परन्तु वे जैनियोंका वर्णन सम्भवतः पक्षपातके साथ करते हैं। इस लेखका यह उद्देश नहीं कि जैनसमाजके श्राचार विचारों और प्रथाअोंका वर्णन किया जाय और न एक लेखमें जैन-गृह-निर्माण-कला, आदि का ही वर्णन हो सकता है । परन्तु इस लेखमें इस प्रश्नपर विचार करनेका प्रयत्न किया गया है कि जैनधर्मके चिर-सम्पर्कसे हिन्दू समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है। जैनी लोग बड़े विद्वान् और ग्रन्थों के रचयिता थे। वे साहित्य और कलाके प्रेमी थे । जैनियोंकी तामिल-सेवा तामिल देश वासियोंके लिए अमूल्य है। तामिल-भाषा संस्कृतके शब्दोंका उपयोग पहले पहल सबसे अधिक जैनियों ने ही किया। उन्होंने संस्कृत शब्दोंको तामिल-भाषामें उच्चारण को सुगमताकी दृष्टिसे यथेष्ट रूपमें बदल डाला। कन्नड़ साहित्यकी उन्नतिमें जैनियोंका उत्तम योग है। वास्तवमें वे ही इसके जन्मदाता थे । 'बारहवीं शतीके मध्य तक उसमें जैनियों ही की सम्पत्ति थी और उसके अनन्तर बहुत समय तक जैनियों ही की उसमें प्रधानता रहो। सर्व प्राचीन और बहुतसे प्रसिद्ध कन्नड़ ग्रन्थ जैनियों ही के रचे हैं ( लुइस राइस)। श्रीमान् पादरी एफ. किटेल कहते हैं कि 'जैनियोंने केवल धार्मिक भावनाओंसे नहीं, किन्तु साहित्य-प्रेमके विचारसे भी कन्नड़ भाषाकी बहुत सेवा की है और उक्त भाषामें अनेक संस्कृत ग्रन्थोंका अनुवाद किया है।" अहिंसाके उच्च आदर्शका वैदिक संस्कारों पर प्रभाव पड़ा है जैन-उपदेशोंके कारण ब्राह्मणोंने जीव-बलि-प्रदानको बिलकुल बन्द कर दिया और यज्ञोंमें जीवित पशुओंके स्थानमें आटेकी बनी मूर्तियां काममें लायी जाने लगीं। दक्षिण-भारतमें मूर्तिपूजा और देव-मन्दिर-निर्माणकी प्रचुरताका भी कारण जैनधर्मका प्रभाव है । शैव-मन्दिरोंमें महात्माअोंकी पूजाका विधान जैनियों ही का अनुकरण है । द्राविड़ोंकी नैतिक एवं मानसिक उन्नतिका मुख्य कारण पाठशालाओंका स्थापन था, जिनका उद्देश्य जैन विद्यालयोंके प्रचारक मण्डलोंको रोकना था। उपसंहार मदरास प्रान्तमें जैन समाजकी वर्तमान दशा पर भी एक दो शब्द कहना उचित हो गा। गत मनुष्य-गणनाके अनुसार सब मिलाकर २७००० जैनी इस प्रान्तमें थे, जिनमें से दक्षिण कनारा, उत्तर २२१
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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