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________________ वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ थे । लक्ष्मेश्वरमें कितने ही कल्पित अभिलेख (ताम्रपत्रादि ) मिले हैं जो संभवतः ईसाकी १० व अथवा ११ वीं शतीमें दिये गये होंगे तथापि उनमें उन धार्मिक दानोंका उल्लेख है जो प्रारम्भिक चालुक्य राजा विनयादित्य, विजयादित्य तथा विक्रमादित्य द्वितीयने जन धर्मायतनों को दिये थे। फलतः इतना तो मानना ही पड़ेगा कि उक्त चालुक्य नृपति यदा कदा जैनधर्मके पृष्ठपोषक अवश्य रहे हों गे अन्यथा जब ये पश्चात्-लेख लिखे गये तब 'उक्त चालुक्य राजा ही क्यों दातार' रूपमें चुने गये तथा दूसरे अनेक प्रसिद्ध राजाओंके नाम क्यों न दिये गये इस समस्याको सुलझाना बहुत ही कठिन हो जाता है । बहत संभव है कि ये अभिलेख पहिले प्रचारित हुए तथा छीलकर मिटा दिये गये मूल लेखोंकी उत्तरकालीन प्रतिलिपि मात्र थे । और भावी इतिहासकारोंके उपयोगके लिए पुनः उत्कीर्ण करवा दिये गये थे, जोकि वर्तमानमें उन्हे मनगढन्त कह रहे हैं । तलवाड़के गंग राजवंशके अधिकांश राजा जैन धर्मानुयायी तथा अभिरक्षक थे । जैन धर्मायतनोंको गंगराजा राचमल्ल द्वारा प्रदत्त दानपत्र कुर्ग में मिले है । जब इस राजाने वल्हमलाई पर्वत पर अधिकार किया था तो उसपर एक जैनमन्दिरका निर्माण कराके विजयी स्मृतिको अमर किया था। प्रकृत राज्यकालमें लक्ष्मेश्वरमें राय-राचमल्ल वसति, गंगा-परमादि चैत्यालय, तथा गंग-कन्दर्प-चैत्यमन्दिर' नामोंसे विख्यात जैनमन्दिर वर्तमान थे । जिन राजाओंके नामानुसार उक्त मन्दिरोंका नामकरण हुआ था वे सब गंगवंशीय राजालोग जैनधर्मके अधिष्ठाता थे; ऐसा निष्कर्ष उक्त लेख परसे निकालना समुचित है । महाराज मारसेन द्वितीय तो परम जैन थे । आचार्य अजितसेन उनके गुरू थे। जैनधर्ममें उनकी इतनी प्रगाढ़ श्रद्धा थी कि उसीके वश होकर उन्होंने ९७४ ई० में राज्य त्याग करके समाधि मरण ( सल्लेखना) पूर्वक प्राण विसर्जन किया था। मारसिंहके मंत्री चामुण्डराय चामुण्डराय पुराणके रचयिता स्वामिभक्त प्रबल प्रतापी सेनापति थे । श्रवणबेलगोलामें गोम्मटेश्वर (प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवके द्वितीय पुत्र बाहुबली) की लोकोत्तर, विशाल तथा सर्वाङ्ग सुन्दर मूर्तिकी स्थापना इन्हींने करवायी थी। जैनधर्मकी अास्था तथा प्रसारकताके कारण ही चामुण्डरायकी गिनती उन तीन महापुरुषों में की जाती है जो जैनधर्मके महान प्रचारक थे। इन महापुरुषोंमें प्रथम दो तो श्री गंगराज तथा हुल्ल थे जो कि होयसल वंशीय महाराज विष्णु-वर्द्धन तथा मारसिंह प्रथमके मन्त्री थे। नोलंबावाड़ी में जैनधर्मकी खूब वृद्धि हो रही थी। एक ऐसा शिलालेख मिला है जिसमें लिखा है कि नोलम्बावाड़ी प्रान्तमें एक ग्रामको सेठने राजासे खरीदा था तथा उसे धर्मपुरी" ( वर्तमान सलेम जिलेमें पड़ती है) में स्थित जैन धर्मायतनको दान कर दिया था। १ इ० एण्टी० ७, पृ० १११ तथा अगे। २ ३० एण्टी०६ पृ १०३। ३ एपीग्राफिका इण्डिका, ४ पृ १४० । ४ ६० एण्टी० ७ पृ १०५-६ । ५ एपी. इ. भा. १० पृ. ५७ । २००
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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