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________________ जैनधर्मकी अोर एक दृष्टि संपादनमें साधनीभूत उपायोंके लिए झगड़ने लगे तभीसे धर्मयुद्धका बीज बोया गया। जिसका फल महाभारतादि युद्धसे लेकर इस बीसवीं सदीके दो महायुद्धों तक परिणत हुअा । इन्ही बातों पर पूर्ण विचार कर महात्मा गांधी दृढ़ विश्वाससे कहते थे कि सत्य, अहिंसा और समता द्वारा ही संसारमें शांति स्थापित हो गी और उसका संपादन त्याग और तपस्याके द्वारा ही होगा । न कि पाशवी बलके प्रयोगसे | कौन नहीं कहता कि इस मार्ग में जैनधर्म और बौद्धधर्म दोनों अग्रसर हैं। और कौन सा धर्म नहीं है जो इसे नहीं माने गा यदि उसके अनुयायी मानवीय स्वार्थ वश होकर संसारके कल्याण की ओर दृष्टि न दें। धार्मिकता का पुनरुत्थान, ___ सारा संसार त्रिगुणात्मक है । यदि हम कहें कि संसारसे रजोजुण और तमोगुण को मिटा देंगे तो हमारा यह कथन विवेकसे कोसों दूर रहे गा । हां; इतना संभवप्राय है कि यदि अथक कोशिश करें तो सत्त्वगुण समृद्ध होकर अन्य दोनों को अभिभूत करे। यह जब होगा तभी विश्वमें शान्ति स्थापित हो गी । पाशवी बलके प्रयोगसे आज तक संसार का कल्याण कभी न हुअा है; न अागे होगा। इससे यहां पर यह नहीं समझना चाहिए कि निःश्रेयस्के संपादनमें अभ्युदयसे हाथ धो बैठें । ये दोनों परस्पर सम्बद्ध हैं । विना सच्चे अभ्युदयके निःश्रेयस्की कल्पना ही वृथा है । जैनधर्म करता है, त्याग तभी संभव है जब पासमें पूजी हो । अभ्युदय रूपी पूजी पर्याप्त प्रमाणमें रहनेके बाद ही निःश्रेयस् की चर्चा हो सकती है। अभ्युदयमें प्रधान अर्थ और काम हैं । उनका संपादन धर्मके साथ होना चाहिए। और इस विधि चलाने वाले प्रभावशाली पुरुष अधिकसे अधिक इस संसार में उत्पन्न हों गे तभी इसका उद्धार होगा। इस समय इसी चेष्टा की परम अवश्यकता है । और हम विश्वासके साथ कह सकते हैं कि जैनधर्म इस कार्यमें परम सहायक होगा और है। मानवताके कल्याणके लिए महात्मा गांधीके सदृश हजारों व्यक्तियों की आवश्यकता है । परंतु उसके लिए कठिन तपस्या की नितान्त आवश्यकता है । जिसपर सबसे अधिक जोर जैनधर्म ही दिया है। १४५
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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