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________________ जगतकी रचना और उसका प्रबन्ध प्रचार किया हुअा बतलाते हैं । किन्तु ऐसा अंधेर तो मामूली राजाओंके राज्यमें भी नहीं होता । प्रत्येक राजाके राज्यमें जिस प्रकारका कानून चालू होता है उसके विरुद्ध यदि कोई मनुष्य नियम चलाना चाहे तो वह राजविद्रोही समझा जाता है और दण्ड पाता है, परन्तु सर्वशक्तिमान् परमेश्वरके राज्यमें दिनदहाड़े सैकड़ों ही मतोंके प्रचारक अपने अपने धर्मोंका उपदेश करते हैं, अपने अपने सिद्धान्तोंको उसी एक परमेश्रकी श्राज्ञा बताकर उसके ही अनुसार चलनेकी घोषणा करते हैं, और यह सब कुछ होते हुए भी उस परमेश्वर या संसारके प्रबन्धकर्ताकी तरफसे कुछ भी रोक-टोक, इस विषयमें नहीं होती। ऐसे भारी अंधेरकी अवस्थामें तो कदाचित् भी यह नहीं माना जा सकता कि कोई महाशक्तिसंपन्न प्रबन्धकर्ता इस संसारका प्रबन्ध कर रहा है, बल्कि ऐसी दशामें तो यही मानने के लिए विवश होना पड़ता है कि वत्तुस्वभावपर ही संसारका सारा ढांचा बंध रहा है और उसीके अनुसार जगतका यह सब प्रबन्ध चल रहा है । यही वजह है कि यदि कोई मनुष्य वस्तुस्वभावको उलटा पुलटा समझकर गलती करता है या दूसरोंको बहकाकर गलतीमें डालता है तो संसारकी ये सब वस्तुएं उसको मना करने अथवा रोकने न जाती और न अपने अपने स्वभावके अनुसार अपना फल देनेसे ही कभी चूकती हैं। जैसे अागमें चाहे तो कोई नादान बच्चा अपने आप हाथ डाल देवे और चाहे किसी बुद्धिमान-पुरुषका हाथ भूलसे पड़ जावे, परन्तु वह भाग उस बच्चेकी नादानीका और बुद्धिमानके अनजानपनेका कुछ भी ख्याल नहीं करेगी, बल्कि अपने स्वभावके अनुसार उन दोनोंके हाथोंको जलानेका कार्य अवश्य कर डालेगी। मनुष्यके शरीरमें सैकड़ों बीमारियां ऐमी होती हैं जो उसके विना जाने बूझे दोषोंका ही फल होती हैं, परन्तु प्रकृति या वस्तुस्वभाव उसे यह नहीं बताता कि तेरे अमुक दोषके कारण तुझको यह बीमारी हुई है। इसी तरह हमारे अात्मीय दोषोंका फल भी हमको वस्तुस्वभावके अनुसार ही मिलता है और वस्तुस्वभाव हमको यह नहीं बतलाता है कि हमको हमारे किस रहस्यका कौन फल मिला, परन्तु फल प्रत्येक कृत्यका मिलता अवश्य है। उपसंहार-- इस प्रकार वस्तुस्वभावके सिद्धान्तानुसार तो यह बात ठीक बैठ जाती है कि सुख दुःख भुगतते समय क्यों हमको हमारे उन कृत्योंकी खबर नहीं होती, जिनके फलरूप हमको वह सुख दुःख भुगतना पड़ता है । परन्तु किसी प्रबन्धकर्ताको मानने की हालतमें यह बात कभी ठीक नहीं बैठती, बल्कि उलटा बड़ा भारी अन्धेर ही दृष्टिगोचर होने लगता है । यदि हम यह मानते हैं कि जो बच्चा किसी चोर, डाकू 'वेश्या' अादि पापियोंके घर पैदा किया गया है वह अपने भले बुरे कृत्योंके फलस्वरूप ही ऐसे स्थानमें पैदा किया गया है तो प्रबन्धकर्ता परमेश्वर माननेकी अवस्थामें यह बात भी ठीक नहीं बैठती, क्योंकि शराबी यदि शराब पीकर और पागल बनकर फिर भी शराबकी दुकानपर जाता है और पहलेसे भी ज्यादा तेज शराब मांगता है । वस्तुत्वभावके अनुसार तो यह बात ठीक बैठ जाती है कि १०३
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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