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________________ सम्पादकीय इतना ही कह सकता हूँ कि मैंने अपनी मर्यादाओं का यथाशक्ति निर्वाह किया है। यही कारण है कि . अभिनन्दन में केवल अड़सठ पृष्ठ देकर शेष ग्रन्थ पूज्य श्री १०५ वर्णीजी के जीवनके ही समान सर्व हितकी सामग्रीके लिए उत्सर्जित है । तथा उनके ही समान विद्वज्जन-संवेद्य होकर भी सरलजन मनोहारी भी है। _ विवशताओं और मर्यादाओंके कारण मुझे इस साधनामें कुछ अपनी इच्छाके प्रतिकूल भी जाना पड़ा है। यही कारण है कि वर्णीजी के कितने ही भक्तों तथा अनुरागी विद्वानोंकी कृतियों को ग्रन्थमें नहीं दे सका हूँ। इसके लिए मैं उनसे क्षमा प्रार्थी हूं। मैं इनका तथा उन सब विद्वानों का अत्यन्त आभारी हूँ जिनकी कृतियों से यह ग्रन्थ बना है। मान्यवर पं० बनारसीदास जी चतुर्वेदी की उदारता तो अलौकिक है। यद्यपि उनका ग्रन्थ के सम्पादनसे कोई वैधानिक सम्बन्ध नहीं रहा है तथापि उन्होंने बुन्देलखण्ड विभागकी पूरी सामग्री तथा चित्रावलि का संकलन और सम्पादन किया है। इस विभागके ग्रन्थमें आने का पूरा श्रेय इन्हीं को है। इतना ही नहीं इसमें दत्त कितने ही व्यक्ति-परक लेखोंको देखकर वर्णीजी की महत्ता. उनकी सेवाओं की गुरुता तथा अपने परम हितूके प्रति अपनी उदासीनता की ओर हमारी दष्टि अनायास ही जा सकेगी। अतः मैं चतुर्वेदीजीका सविषेश आभारी हैं। ग्रन्थ की 'चित्रा' के विषय में हम अपने संकल्प को पूर्ण नहीं कर सके। इसके दो कारण रहे प्रथम--प्रामाणिक एवं ख्यात कलाकार जैन मान्यता तथा भावों से अपरिचित हैं, दूसरे मेरी उदासीनता। तथापि वर्णीजी के जीवन सम्बन्धी चित्रों को लेने में मुझे श्री डा० ताराचन्द्र, प्रो० निहालचन्द्र नजा, डा. शिखरचन्द्र, विद्यार्थी नरेन्द्र धनगुंवा, श्री वर्णी ग्रन्थमाला तथा यशपालजी का पर्याप्त सहयोग मिला है। इसके लिए ये सज्जन धन्यवादाह है। बाबू यशपालजीका तो और अनेक प्रकार से भी सहयोग मिला है अतः केवल धन्यवाद देना उसका महत्त्व घटाना है। वर्णी हीरक जयन्ति महोत्सव समिति के संयुक्त मंत्री पं० पन्नालालजी साहित्याचार्यके विषय में क्या कहा जाय। वे इस योजना के सृष्टा, पोषक एवं परिचालक रहे हैं। ग्रन्थकी तयारीमें लगे वर्षोंके अतीत पर दृष्टि डालने से जहां मन्दोत्साह एवं शिथिल अनेक साथी दष्टि आते है वहीं कर्तव्यपरायण एवं सतत प्रयत्नशील एकाकी इन्हें देखकर हृदय विकसित हो उठता है। आज तो हम दोनों ही परस्पर सहयोगी तथा इस श्रद्धाज्ञापन यज्ञके लिए दायी हैं। अपने घरके लोगों के प्रति सार्वजनिक रूपसे कुछ भी कहना भारतीय शिष्टाचारके प्रतिकल है। अतः जिनके उद्बोधन, प्रेरणा तथा सर्वाङ्ग सहयोगके विना में शायद इस दायित्वको पूर्ण ही न कर सकता, उन पूज्य भाई ( पं. कैलाशचन्द्र, सिद्धान्तशास्त्री ) के विषय में मौन ही धारण करता हूँ। बौद्धिक सहयोग दाता; धीमानों के समान उन श्रीमानों का भी आभारी हैं जिन्होंने मेरे संकेत करने पर ही हमें आर्थिक सहयोग प्रदान किया है । श्री भार्गव भूषण प्रेस के स्वामी श्री पृथ्वीनाथ भार्गव तथा प्रेस के समस्त कर्मचारियों को हार्दिक धन्यवाद है जिनके सहयोग से यह ग्रन्थ छपा है। अन्तमें पूज्य श्री वीजी के उस सातिशय पुण्य को प्रणाम करता हूँ जिसके प्रतापसे यह कार्य पूर्ण हआ और उनकी दीर्घायु की कामना करता हैं। श्री काशी विद्यापीठ, बनारस । विनीत, पौष कृष्णा ११-२००६ ] गो० खुशालचन्द्र
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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