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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
हो गया था। जैन कहते हैं कि उस समय यज्ञकी इस नृशंस पशुहत्याके विरुद्ध जिस जिस मतने विरोधका बीड़ा उठाया था उनमें जैनधर्म सब से आगे था । 'मुनयो वातवसनाः" कहकर ऋग्वेदमें जिन नग्नमुनियों का उल्लेख है, विद्वानोंका कथन है कि वे जैन दिगम्बर संन्यासी ही हैं । "बुद्धदेवको लक्ष्यकरके जयदेवने कहा है
'निन्दसि यज्ञाविधेरहह श्रुतिजातं
सदय हृदय दिशति पशुघातम् ?' किन्तु यह अहिंसातत्त्व जैनधर्ममें इसप्रकार अंग-अंगी भावसे संमिश्रित है कि जैनधर्मकी सत्ता बौद्ध धर्मके बहुत पहलेसे सिद्ध होनेके कारण पशुघातात्मक यज्ञ विधिके विरुद्ध पहले पहले खड़े होनेका श्रेय बुद्धदेवकी अपेक्षा जैनधर्मको ही अधिक है । वेदविधिकी निन्दा करनेके कारण हमारे शास्त्रोंमें चार्वाक, जैन और बौद्ध पाषण्ड 'या अनास्तिक' मतके नामसे विख्यात हैं । इन तीनों सम्प्रदायोंकी झूटी निन्दा करके जिन शास्त्रकारोंने अपनी साम्प्रदायिक संकीर्णताका परिचय दिया है, उनके इतिहासकी पर्यालोचना करनेसे मालूम होगा कि जो ग्रन्थ जितना हो प्राचीन है, उसमें बौद्धोंकी अपेक्षा जैनोंको उतनी हो अधिक गाली गलौज की है। अहिंसावादी जैनोंके शान्त निरीह शिर पर किसी किसी शास्त्रकारने तो श्लोक पर श्लोक ग्रथित करके गालियोंकी मूसलाधार बर्षा की है। उदाहरण के तौरपर विष्णु पुराणको ले लीजिये अभी तककी खोजोंके अनुसार विष्णु पुराण सारे पुराणोंसे प्राचीनतम न होनेपर भी अत्यंत प्राचीन है। इसके तृतीय भागके सत्रहवें और अठारहवें अध्याय केवल जैनोंकी निन्दासे पूर्ण हैं । "नग्नदर्शनसे श्राद्धकार्य भ्रष्ट हो जाता है, और नग्नके साथ संभाषण करनेसे उस दिनका पुण्य नष्ट हो जाता है। शतधनु नामक राजाने एक नग्न पाषण्डसे संभाषण किया था, इस कारण वह कुत्ता, गीदड़, भेड़िया, गीध और मोरकी . योनियों में जन्म धारण करके अन्त में अश्वमेध यज्ञके जलसे स्नान करनेपर मुक्तिलाभ कर सका।" जैनोंके प्रति वैदिकोंके प्रबल विद्वेषकी निम्नलिखित श्लोकोंसे अभिव्यक्ति होती है
"न पठेत् यावनी भाषां प्राणैः कण्ठगतैरपि ।
हस्तिना पीड्यमानोऽपि न गच्छेज नमन्दिरम् ।।" यद्यपि जैन लोग अनन्त मुक्तात्माओं (सिद्धों ) की उपासना करते हैं, तो भी वास्तवमें वे व्यक्तित्व रहित पारमात्म्य स्वरूपकी ही पूजा करते हैं । व्यक्तित्व रहित होनेके कारण हो जैन पूजा पद्धतिमें वैष्णव और शाक्तमतोंके समान भक्तिकी विचित्र तरङ्गोंकी संभावना बहुत ही कम रह जाती है ।
बहुत लोग यह भूल कर रहे थे कि बौद्धमत और जैनमतमें भिन्नता नहीं है पर दोनों धर्मों में कुछ अंशोंमें समानता होनेपर भी असमानताकी कमी नहीं है । समानतामें पहली बात तो यह है कि दोनोंमें अहिंसा धर्मकी अत्यन्त प्रधानता है । दूसरे जिन, सुगत, अर्हत्, सर्वज्ञ, तथागत, बुद्ध, आदि नाम बौद्ध
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