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________________ ७ ये ही शब्द नागार्जुन के कथन में भी हैं— ८ १. समयसार ७, १९, ३०० से । २ ३२ से । ९ समय- १५३ । ज्ञानादिगुण और आत्माका सम्बन्ध', श्रात्मा और देहका सम्बन्ध, जीव और अध्यवसाय, गुणस्थान यादिका सन्बन्ध 3, मोक्षमार्ग ज्ञानादि ४, श्राध्मा", कर्तृत्व, ग्रात्मा और कर्म, क्रिया, भोग, बद्धत्व और अबद्धत्व' मोक्षापयोगी लिंग, बंध विचार, सर्वज्ञत्व ११, पुद्गल १२ । माध्य पृ ३७० | कुछ आचार्यने अनेक विषयों की चर्चा उक्त दोनों नयों के श्राश्रयसे की है, जिनमें से दोववि णयाण भणियं जाणइ णवरं तु समयपडिवद्धो । दु णयपक्खं गिरहदि किचि वि णयपक्ख परिहीणो ॥ ३ ६१ से । ४ पचा० १६७ से, नियम० ५४ से दर्शनप्रा० २० । ५ समय० ६.१६ इत्यादि, नियम० ४९ | ६ "" " जहणवि सक्कमणजो श्रणजभासं विणाहुगा हेहुं । तह ववहारेण विणा परमत्थुवदेसणमसक्कं ॥ समयसार ८ । " 39 नान्यथा भाषया म्लेच्छः शक्यो ग्राहयितुं यथा । न लौकिकमृते: लोकः शक्यो ग्राहयितुं तथा ॥ دو ४४४ श्राचार्य कुन्दकुन्दकी देन २४-९ आदि, ,, १८ । ३८६ से । १५१ । १० प्रवचन० २-९७ । ११ नियम० १५८ । १२ " २९ ४५ ये हैं-
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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