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श्राचार्य कुन्दकुन्दकी देन वाचकने पांच ज्ञानोंके साथ प्रमाणोंका अभेद तो बताया ही है किन्तु नयोंको किस ज्ञानमें समाविष्ट करना, इसकी चर्चा नहीं की है। प्राचार्य कुन्दकुंदने श्रुतके भेदोंकी चर्चा करते हुए नयोंको भी श्रुतका एक भेद बतलाया है उन्होंने श्रुतके भेद इस प्रकार किये हैं लब्धि, भावना, उपयोग और नय ।
श्राचार्यने सम्यग्दर्शनको व्याख्या करते हुए कहा है कि प्राप्त-अागम और तत्त्वकी श्रद्धा सम्यग्दर्शन है 3 अापके लक्षण में अन्य गुणों के साथ क्षुधा, तृषादिका अभाव भी बतलाया है अर्थात् उन्होंने प्राप्तकी व्याख्या दिगंबर मान्यताके अनुसारकी है । अागमकी व्याख्यामें उन्होंने वचनको पूर्वापर दोष रहित कहा है । उससे उनका तात्पर्य दार्शनिकोंके पूर्वापर विरोध दोष राहित्यसे है ।
निश्चय-व्यवहार नय--
__ श्राचार्य कुंदकुन्दने नयोंके नैगमादि भेदोंका विवरण नहीं किया है । किन्तु श्रागमिक व्यवहार और निश्चय नयका स्पष्टीकरण किया है और उन दोनों नयोंके अाधारसे मोक्षमार्गका और तत्त्वोंका पृथक्करण किया है । निश्चय और व्यवहारकी व्याख्या प्राचार्य ने आगमानुकूल ही की है किन्तु उन नयों के अाधारसे विचारणीय विषयोंकी अधिकता प्राचार्य के ग्रंथों में स्पष्ट है। उन विषयों में यात्मादि कछ विषय तो ऐसे हैं जो आगममें भी हैं किन्तु प्रागमिक वर्णनमें यह नहीं बताया गया कि यह वचन अमुक नयका है । प्राचार्य के विवेचन के प्रकाशमें यदि अागमोंके उन वाक्योंका बोध किया जाय तब यह स्पष्ट होजाता है कि श्रागममें वे वाक्य कौनसे नयके आश्रयसे प्रयुक्त हुए हैं । उक्त दो नयोंकी व्याख्या करते हुए प्राचार्यने कहा है
"ववहारोऽभूदत्थो भूदत्थो देसिदो दु सुद्धणयो" अर्थात् व्यवहार नय अभूतार्थ है और शुद्ध अर्थात् निश्चयनय भूतार्थ है ।
तात्पर्य इतना ही है कि वस्तुके पारमार्थिक तात्त्विक शुद्ध स्वरूपका ग्रहण निश्चय नयसे होता है और अशुद्ध अपारमार्थिक या लौकिक स्वरूपका ग्रहण व्यवहार नयसे होता है । वस्तुतः छ द्रव्यों में से जीव और पुद्गल इन दो द्रव्योंके विषयमें सांसारिक जीवोंको भ्रम होता है। जीव संसारावस्था में प्रायः पुद्गलसे भिन्न उपलब्ध नहीं होता है । अतएव साधारण लोग जीवमें कई ऐसे धर्मोंका अध्यास कर देते हैं जो वस्तुतः उसके नहीं होते । इसी प्रकार पुद्गलके विषयमें भी विपर्यास कर देते हैं। इसी विपर्यासकी दृष्टिसे व्यवहारको अभूतार्थग्राही कहा गया है अोर निश्चयको भूतार्थग्राही। परन्तु प्राचार्य इस बातको
१ तत्वार्थ. भाग १-१०,। २ पचास्ति- ४३ । ३. नियमसार ५०।
५ ,८,१०६. ७. समयसार १३ ।
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