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________________ आचार्य कुन्दकुन्दकी देन किंतु निश्चयनयकी अपेक्षासे ज्ञान स्वप्रकाशक है और दर्शन भी । तथा आत्मा स्वप्रकाशक है और दर्शन भी १६४) प्रश्न-यदि निश्चयनयको ही स्वीकार किया जाय और कहा जाय कि केवलज्ञानी अात्म स्वरूपको ही जानता है, लोकालोकको नहीं तब क्या दोष है ? ( १६५) उत्तर -जो मूर्त अमूर्तको, जीव-अजीवको, स्व और सभीको जानता है उसके ज्ञानको अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष कहा जाता है। और जो पूर्वोक्त सकल द्रव्योंको उनके नाना पर्यायोंके साथ नहीं जानता उसके ज्ञानको परोक्ष कहा जाता है। अतएव यदि एकान्त निश्चयनयका आग्रह रखा जाय तब केवलज्ञानीको प्रत्यक्ष नहीं किंतु परोक्ष ज्ञान होता है यह मानना पड़ेगा । (१६६-१६७) प्रश्न-और यदि व्यवहारनयका ही अाग्रह रखकर ऐसा कहा जाय कि केवलज्ञानी लोकालोकको तो जानता है किंतु स्वद्रव्य आत्माको नहीं जानता तब क्या दोष होगा ? (१६८) उत्तर-ज्ञान ही तो जीवका स्वरूप है । अतएव परद्रव्यको जाननेवाला ज्ञान स्वद्रव्य श्रात्माको नहीं जाने यह कैसे संभव है ? और यदि ज्ञान स्वद्रव्य आत्माको नहीं जानता है ऐसा आग्रह हो तब यह मानना पड़ेगा कि ज्ञान जीव-स्वरूप नहीं किंतु उससे भिन्न है। वस्तुतः देखा जाय तो ज्ञान ही अात्मा है और अात्मा ही ज्ञान है अतएव व्यवहार और निश्चय दोनोंके समन्वयसे यही कहना उचित है कि ज्ञान स्वपरप्रकाशक है और दर्शन भी । ( १६९-१७०) सम्यग्ज्ञान वाचक उमास्वातिने सम्यग्ज्ञानका अर्थ किया है अव्यभिचारि, प्रशस्त और संगत । किंतु आचार्य कुन्दकुन्दने सम्यग्ज्ञानकी जो व्याख्या की है उसमें दार्शनिक प्रसिद्ध समारोपका व्यवच्छेद अभिप्रेत है। उन्होंने कहा है "संसय बिमोह विब्भम विवज्जियं होदि सण्णाणं' ।" अर्थात्-संशय, विमोह और विभ्रमसे वर्जित ज्ञान सम्यग्ज्ञान है। - एक दूसरी बात भी ध्यान देने योग्य है, खासकर बौद्धादि दार्शनिकोंने सम्यग्ज्ञानके प्रसङ्गमें 'हेय और उपादेय शब्दका प्रयोग किया है। प्राचार्य कुन्दकुन्द भी हेयोपादेय तत्त्वोंके अधिगमको सम्यग्ज्ञान कहते हैं । स्वभाव और विभावज्ञान-- वाचकने सर्वपरम्पराके अनुसार मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञानोंको क्षायो.शमिक १ नियमसार ५१ २. “अधिगमभावो णाणं हेयोपादेयतच्चाणं ।” नियमसार ५२ । सुत्तपाहुड ५ । नियमसार ३८ । ३९
SR No.012085
Book TitleVarni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhushalchandra Gorawala
PublisherVarni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti
Publication Year1950
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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