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शुभेच्छा
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प्रकार आपकी लेखनी भी नुकीली, चुटीली एवं प्रेरक है। आपके द्वारा सम्पादित 'तीर्थंकर वाणी' के सम्पादकीय लेखों का अपना एक विशेष आकर्षण रहता है, बड़ी से बड़ी बात को, विकृति को शिथिलाचार के विरोध को सरल ढंग से लिखने की आपमें अनुपम कला है। आपने अपने जीवन को, जैन धर्म, आगम और सिद्धान्त के प्रचार-प्रसार में लगाकर अपने आपको अभिनन्दनीय बना लिया है। अभिनंदन की इस मधुरबेला पर हम आपके दीर्घ स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए आपका अभिनंदन करते हैं।
पं. सनतकुमार विनोदकुमार जैन संयुक्त मंत्री- अ. भा. शास्त्रि परिषद
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मंगल भावना
श्री डॉ. शेखरचन्द्र जी सा. से मेरा प्रथम परिचय लगभग आज से १५-२० वर्ष पहले दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद के अधिवेशन में अहमदाबाद में हुआ था। आपके प्रथम मिलन में ही जिस आत्मीयता की छाप मेरे ऊपर पड़ी वह अमिट है। सामने वाले के ऊपर अपनी वार्ता से प्रभाव डालना आपकी विशेषता हैं। आपका प्रारम्भिक जीवन सामान्य रहा है किन्तु पूनम की चांद की तरह यह विकसित और प्रकाशित होता रहा। डॉ. शेखर सा. की एक विशेषता है जो पं. वर्ग में बहुत कम पाई जाती है वह है अपनी कमाई का कुछ अंश दान में देना। आपने भी एक फंड कायम किया है। जिसके आधार पर समाज के गरीब, निर्धन, असहाय छात्रों को अध्ययन में सहयोग मिलेगा निश्चित ही यह सराहनीय कदम है मैंने इनके प्रवचनों और व्याख्यानों में एक कला और परिलक्षित की है कि अपनी क्षमता औ दबंगता के कारण सभा पर व अन्य विद्वानों पर छा जाते हैं। इनके इस सम्मान के समय इनके उत्तरोत्तर यशस्वी सम्मानस्पद बनने की शुभ मंगल कामना व सम्मानजंलि अर्पित है।
श्री वैद्य धर्मचन्द्र जैन ( इन्दौर ) !
शुभकामना संदेश
विख्यात साहित्यकार डॉ. बनारसी दात चतुर्वेदी प्रायः कहा करते थे कि हर व्यक्ति, चाहे श्रीमान हो, धीमान् अथवा उच्च पदस्थ अधिकारी हो या सामान्य कर्मचारी में कुछ न कुछ गुण अवश्य होते हैं। किसी भी व्यक्तित्व में छिपे उन गुणों का प्रचार और प्रकाशन होना चाहिए। हमारे मनीषियों ने भी हमेशा 'गुण ग्रहण का भाव रहे नित'
ही प्रेरणा दी है।
डॉ. शेखरजी ने अपने जीवनकाल में छोटी उम्र में ही शैक्षणिक क्षेत्र में प्रवेशकर व्याख्याता, प्राध्यापक, विबागाध्यक्ष एवं प्राचार्य पद पर कार्य कर जैन विद्यालयों में गृहपति के रूप में रहकर विद्यार्थियों में धर्म के संस्कारों से सिंचित किया है। आपने हिन्दी साहित्य एवं जैन साहित्य, शोध ग्रन्थ में लेखन कार्य करके साहित्य जगत में अमूल्य सेवा प्रदान की।
15 वर्षों से 'तीर्थंकर वाणी' के सम्पादक के रूप में एक निडर सम्पादक के रूप में उभर रहे हैं, तो श्री आशापुरा मां जैन अस्पताल की स्थापना करके सामाजिक प्रवृत्ति में अमूल्य योगदान प्रदान किया है।
श्रेष्ठ लेखन कार्य, सामाजिक सेवा एवं धार्मिक प्रवृत्तियों को मद्देनजर रखते हुए कई उपाधियों से सम्मानित किये गये हैं।
मैं भगवान जिनेन्द्र से प्रार्थना करता हूँ कि डॉ. श्री शेखरचन्द्रजी दीर्घायु हों । शिक्षा, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में जो योगदान दे रहे हैं वो सदैव निभाते रहें।
श्री ज्ञानमल शाह ( अहमदाबाद ) 1